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Suchita Pandey

// गधा..भ्रष्ट प्रशासन.. //

अतिसचेत  हैं  कान  खड़े  हैं ,
हम  लोगों  से  बहुत  बड़े  हैं !

               अनुशासित हैं, थिंक  टैंक  हैं,
               चिंताओं  से  पूर्ण   ब्लैंक   हैं ।

किसी बात का न कोई असर इन पर ,
सींग  नहीं  हैं  इनके  सर  पर !

               आओ  गर्दभ  के  गुण गायें ,
               गली - गली में माला पहनाएं ।

यह  राजाओं  के  राजा  हैं ,
बजा  रहे  सबका  बाजा  हैं !

               इनकी  जो  आरती  उतारे ,
               वही  करें  सब  वारे  न्यारे ।

- सुचिता पाण्डेय✍


 #व्यंगात्मक_कविता
#भ्रष्टराजनीति
#प्रशासन
#समाज़
#राजनीतिकपाखंड

// गधा..भ्रष्ट प्रशासन.. //

Swapnil Suresh Bhovad

#Gurupurnima

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बघतोस ,

काय आवळ यांच्या मुसक्या .....

अजुन किती दिवस ह्यांचे नखरे सहन करणार ...

जास्तीत जास्त काय होईल ,

अटक होईल होवुदे ,

निष्पाप जीवांचे जीव तर नाही जाणार ...

सामान्य नागरिकांना त्रास तर नाही होणार ,

कर युद्ध ...

महाभारतात लिहिलं आहे

वाईट लोक सांगून समजली असती ,

तर श्रीकृष्णाने "युद्ध" घडवल च नसत ....


#प्रशासन विरूद्ध सामान्य नागरिक 

 लढाई......मग ते कोणीही असो 


(अध्याय पहिला -  प्राथमिक आरोग्य केंद्र )


गुरुवर्य - बाळासाहेब ठाकरे #Gurupurnima

mohd waseem.mansoori

gfd

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लॉकडाउन में आतिशबाज़ी की दुकानें खुली और इतनी बड़ी तादाद में बम फटाखे बिके, पूरे देश का #प्रशासन क्या कर रहा था, सवाल है ??? gfd

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह?  वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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Story of Sanjay Sinha 
 कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? 
वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं।
अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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