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Rishap Gautam

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✨"Recollection in Your Memory"❣
⛓#क्यों, "हिचकियों" #से🌹 मुखबिरी #कराते हो हमदम!!❣✨
✨#कह क्यों #नहीं❣ देते,,,"#तुम्हे हम #याद आते हैं"!!✨🌹
Courtesy : Rishap Gautam

Gulapsa khatoon

#Happy teacher's Day# nojoto#Poetry#shayri

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ज्ञान का जीवन में आगमन कराते है
मन के अंधकार को दूर  करते  है
जीवन के सत्य से परिचय कराते है
कभी  हंसाते तो कभी  फटकार लगाते है
किन्तु लक्ष्य प्राप्ति का सदेव स्रोत बताते है
हमारे  स्वर्णिम स्वप्नों को  साकार करते है
शिक्षक  तो वो विधाता है
जो हमे शून्य से अनंत बनाते हैं


"शिक्षक तो एक शिक्षक है
अज्ञानता का भक्षक है
जीवन पथ का रक्षक है
शिक्षक तो एक शिक्षक है"

           ✍️गुलप्सा #happy teacher's Day#
#nojoto#poetry#shayri

Meena

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आईने से क्या बात करते रहते हो

 क्या नम आंखों से आईना साफ़ देखते हों

 ग़म के आंसु से,धुंधला पड़ा है आईना 

क्यूं आसु पोंछना भूल जाते हो

आईने से बात करते करते वक़्त का आईना देखते हों 

अपनी ही दुनिया में गुम हो जाते हो

बेजान आईने से, अपनी जान से रूबरू कराते हों

उल्टा दिखाने वाले आईने से ही, पुराने जख्म को, ताज़ा कराते हों

तु हंसे तो हंसे,तु रोएं तो रोएं ऐसे बनावटी आईने से ही

कुछ बोलकर, कुछ टालकर हाल दिल का बोल देते हों

अपनी ही हंसी से उसे भी खिलना सीखा देते हों

हर हाल में डटे रहना बोल देते हों

जो तुझमें  सफ़र करता है

वो आईने को ही क्यूं दिखाते हों

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह?  वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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Story of Sanjay Sinha 
 कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? 
वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं।
अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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