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Mohammad Abdul Kayyum
#इन #औरतों में एक #मर्द भी रहता है #बोझ कांधों पे, पांव में दर्द भी रहता है..!! ©Mohammad Abdul Kayyum #इन #औरतों में एक #मर्द भी रहता है #बोझ कांधों पे, पांव में दर्द भी रहता है..!!
अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "
माता दुर्गा कि आपकी सच्ची अराधना औरतों को "सम्मान" देने में निहित है ©Anushi Ka Pitara #सम्मान #औरतों #का #Navraatra
Roopanjali singh parmar
मैं सुधर जाऊंगी (कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे समाज के दो हिस्से हैं.. एक हिस्से में औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, और एक हिस्सा कमजोर औरतों को ही औरत होने का दर्जा देता है। हम सभी एक स्वतंत्र विचार वाली और आत्मनिर्भर औरत को स्वीकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि हमारी सोच में औरत की छवि एक दबी हुई आवाज़ की तरह है। जिसे हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। औरत को हम या तो दायित्वों में डाल व्यस्त कर देते हैं या मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल कर लेते हैं.. औरतों की कमजोरी की वज़ह क्या है..? दरअसल वज़ह हम खुद हैं.. क्योंकि हम उन्हें ये
feelings365
"बोलती हुई औरतों, बोलती रहना तुम" बोलती हुई औरतें, कितनी खटकती हैं ना.. सवालों के तीखे जवाब देती बदले में नुकीले सवाल पूछती कितनी चुभती है ना...!! लाज स्त्री का गहना है, इस आदर्श वाक्य का मुंह चिढ़ाती तमाम खोखले आदर्शों को, अपनी स्कूटी के पीछे बांधकर खींचती घूरती हुई नज़रों से नज़रें भिड़ाती कितनी बुरी लगती हैं ना औरतें...!! सदियों से हमें आदत है झुकी गर्दन की जिसे, याद हो जाए पैरों की हर एक रेखा.. जिसका सर हिले हमेशा सहमति में, जिसके फैसले के अधिकार की सीमा सीमित हो महज़ रसोई तक...!!
Shahab
उस देश में औरतों का रुतबा कैसे बुलंद हो सकता है ऐ दोस्त , जहां मर्दों की लड़ाई में गालियां मां-बहन की दी जाती है ! ©Shahab #औरतों
Muawiya Zafar Ghazali Mustafai
-पर्दे का मसअले सिर्फ औरतों के लिए हैं क्या ?... “ कौम ए मुस्लिमा की औरतों को परदें की नसीहत करने वाले ज़िम्मेदार कहीं के, कोई कौम के मर्दों से भी कहें की अपनी निगाहों में हया और पाकीज़गी रखें ” ~Ăł Ğâzâłĭ #Gül@@m é Àlì F@kéér Mú@vìy@ z@f@r g@z@lì
Gajraaj Rathore
वो शहर सुना है उस शहर औरतों को इज्जत दी जाती है। गर मैं आयी यहाँ तो , कहानी कुछ और नजर आती है । निगाहें हर अनजान की नोच खाने को तैयार है, जैसे गिद्ध उसकी जाती है । ख्वाब था कि बाँधू वो धागा विश्वास का तुम्हे, मगर निगाहे तुम्हारी भी तो मेरे उभरते बदन पर जाती है। सुना है उस शहर औरतों को इज्जत दी जाती है । कुचला है मेरा जिस्म इतनी दफा इस शहर ने , की मानो तुम हाथी ओर मुझमे चींटी नजर आती है। सुना है उस शहर औरतों को इज्जत दी जाती है । गर मैं आयी यहाँ तो , कहानी कुछ और नजर आती है जैसे तवायफ मेरी जाती है । वो शहर
Dimika2sister
घूँघट अपने मुँह को ओढ़नी से ढक लेना घुँघट कहलाता है। आजकल के लोग घूँघट प्रथा को कुप्रथा मानने लगे हैं। उन्हें लगता हैं घूँघट नही होना चाइए क्योंकि औरतों को पूरा अधिकार है खुल के जीने का । सभी को लगता हैं कि ये एक रूढ़ीवादी सोच है। जो औरतों पर थोपी जा रही हैं। पर हमे ये नही लगता,