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Best फैलाकर Shayari, Status, Quotes, Stories

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OMG INDIA WORLD

#OMGINDIAWORLD ‼निगाहों से #निगाहें मिलाकर तो देखो💢 💢चाहत की बाहें #फैलाकर तो देखो‼ ‼दिल से दिल #मिल जाते हैं #अक्सर 💢 अपना दिल #मेरे दिल से #मिलाकर तो देखो‼ #शायरी

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‼#निगाहों से #निगाहें मिलाकर तो देखो💢
         💢#चाहत की बाहें #फैलाकर तो देखो‼
        
  ‼#दिल से दिल #मिल जाते हैं #अक्सर 💢
अपना दिल #मेरे दिल से #मिलाकर तो #देखो‼

©OMG INDIA WORLD #OMGINDIAWORLD 
‼#निगाहों से #निगाहें मिलाकर तो देखो💢
         💢#चाहत की बाहें #फैलाकर तो देखो‼
        
  ‼#दिल से दिल #मिल जाते हैं #अक्सर 💢
अपना दिल #मेरे दिल से #मिलाकर तो देखो‼

कवि मुकेश मोदी

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धरती माँ की पुकार

माँ हूँ बच्चों मैं तुम्हारी और तुम हो मेरे लाल

पाल पालकर तुम सबको हो गई मैं कंगाल

कमजोर किया मुझे चीर के देखो मेरा सीना

प्रदूषण फैलाकर कठिन कर दिया मेरा जीना

बाँझ मुझे बनाया पिलाकर जहरीले रसायन

अपने विकास का तुम करते हो झूठा गायन

कहीं किया मुझे बंजर कहीं दलदल फैलाया

घोर बिमारियों से मुझको भी ग्रसित बनाया

ऐसी जर्जर हालत में कैसे तुम सबको पालूं

कैसे अपने सीने से अमृत तुल्य फल निकालूं

पुत्र समान मेरे प्रिय वृक्षों को तुमने काट दिया

मेरे ही आँचल को तुमने सीमाओं में बाँट दिया

चलते चलते मुसाफिर थककर ही मर जाता है

दूर दूर तक पेड़ की ठंडी छाँव नहीं वो पाता है

छलनी किया मेरा सीना तूने ये क्या कर डाला

लालच में तूने मेरे मुख का छीन लिया निवाला

तेरे पांवों तले रहती थी तुझसे क्या मैं लेती थी

जितना लेती थी तुझसे हजार गुना मैं देती थी

अब भी नहीं बिगड़ा कुछ खुद को तूँ संभाल

विलासिता के जंजाल से खुद को तूँ निकाल

हरियाली बढ़ाकर करते जाना तूँ मेरा पालन

श्रीमत के बल पर करना जीवन का संचालन

प्यार करके मुझको तूँ पा ले सुख अविनाशी

हरियाली फैलाकर तूँ मिटा दे मेरी भी उदासी

मेरी सेवा करेगा तो मैं भी सेवा करूंगी तेरी

सुख दूंगी अपार तुझे ये है अटल प्रतिज्ञा मेरी

ॐ शांति

कवि मुकेश मोदी

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धरती माँ की पुकार

माँ हूँ बच्चों मैं तुम्हारी और तुम हो मेरे लाल

पाल पालकर तुम सबको हो गई मैं कंगाल

कमजोर किया मुझे चीर के देखो मेरा सीना

प्रदूषण फैलाकर कठिन कर दिया मेरा जीना

बाँझ मुझे बनाया पिलाकर जहरीले रसायन

अपने विकास का तुम करते हो झूठा गायन

कहीं किया मुझे बंजर कहीं दलदल फैलाया

घोर बिमारियों से मुझको भी ग्रसित बनाया

ऐसी जर्जर हालत में कैसे तुम सबको पालूं

कैसे अपने सीने से अमृत तुल्य फल निकालूं

पुत्र समान मेरे प्रिय वृक्षों को तुमने काट दिया

मेरे ही आँचल को तुमने सीमाओं में बाँट दिया

चलते चलते मुसाफिर थककर ही मर जाता है

दूर दूर तक पेड़ की ठंडी छाँव नहीं वो पाता है

छलनी किया मेरा सीना तूने ये क्या कर डाला

लालच में तूने मेरे मुख का छीन लिया निवाला

तेरे पांवों तले रहती थी तुझसे क्या मैं लेती थी

जितना लेती थी तुझसे हजार गुना मैं देती थी

अब भी नहीं बिगड़ा कुछ खुद को तूँ संभाल

विलासिता के जंजाल से खुद को तूँ निकाल

हरियाली बढ़ाकर करते जाना तूँ मेरा पालन

श्रीमत के बल पर करना जीवन का संचालन

प्यार करके मुझको तूँ पा ले सुख अविनाशी

हरियाली फैलाकर तूँ मिटा दे मेरी भी उदासी

मेरी सेवा करेगा तो मैं भी सेवा करूंगी तेरी

सुख दूंगी अपार तुझे ये है अटल प्रतिज्ञा मेरी

ॐ शांति

कवि मुकेश मोदी

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धरती माँ की पुकार

माँ हूँ बच्चों मैं तुम्हारी और तुम हो मेरे लाल

पाल पालकर तुम सबको हो गई मैं कंगाल

कमजोर किया मुझे चीर के देखो मेरा सीना

प्रदूषण फैलाकर कठिन कर दिया मेरा जीना

बाँझ मुझे बनाया पिलाकर जहरीले रसायन

अपने विकास का तुम करते हो झूठा गायन

कहीं किया मुझे बंजर कहीं दलदल फैलाया

घोर बिमारियों से मुझको भी ग्रसित बनाया

ऐसी जर्जर हालत में कैसे तुम सबको पालूं

कैसे अपने सीने से अमृत तुल्य फल निकालूं

पुत्र समान मेरे प्रिय वृक्षों को तुमने काट दिया

मेरे ही आँचल को तुमने सीमाओं में बाँट दिया

चलते चलते मुसाफिर थककर ही मर जाता है

दूर दूर तक पेड़ की ठंडी छाँव नहीं वो पाता है

छलनी किया मेरा सीना तूने ये क्या कर डाला

लालच में तूने मेरे मुख का छीन लिया निवाला

तेरे पांवों तले रहती थी तुझसे क्या मैं लेती थी

जितना लेती थी तुझसे हजार गुना मैं देती थी

अब भी नहीं बिगड़ा कुछ खुद को तूँ संभाल

विलासिता के जंजाल से खुद को तूँ निकाल

हरियाली बढ़ाकर करते जाना तूँ मेरा पालन

श्रीमत के बल पर करना जीवन का संचालन

प्यार करके मुझको तूँ पा ले सुख अविनाशी

हरियाली फैलाकर तूँ मिटा दे मेरी भी उदासी

मेरी सेवा करेगा तो मैं भी सेवा करूंगी तेरी

सुख दूंगी अपार तुझे ये है अटल प्रतिज्ञा मेरी

ॐ शांति

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 3 - दाता की जय हो! कुएँ पर रखा पत्थर पानी खींचने की रस्सी से बराबर रगड़ता रहता है और उस पर लकीरें पड़ जाती हैं; इसी प्रकार कोई एक ही शब्द बराबर रटा करे तो उसकी जीभ पर या मस्तिष्क पर कोई विशेष लकीर पड़ती है या नहीं, यह बताना तो शरीरशास्त्र के विद्वान का काम है। मैं तो इतना जानता हूँ कि जहाँ वह नित्य बैठा करता था, वहाँ का पत्थर कुछ चिकना हो गया है। श्रीबांकेबिहारीजी के मन्दिर के बाहर कोने वाली सँकरी सीढी के ऊपर वह बैठता था और एक ही रट थी उस

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
3 - दाता की जय हो!

कुएँ पर रखा पत्थर पानी खींचने की रस्सी से बराबर रगड़ता रहता है और उस पर लकीरें  पड़ जाती हैं; इसी प्रकार कोई एक ही शब्द बराबर रटा करे तो उसकी जीभ पर या मस्तिष्क पर कोई विशेष लकीर पड़ती है या नहीं, यह बताना तो शरीरशास्त्र के विद्वान का काम है। मैं तो इतना जानता हूँ कि जहाँ वह नित्य बैठा करता था, वहाँ का पत्थर कुछ चिकना हो गया है। श्रीबांकेबिहारीजी के मन्दिर के बाहर कोने वाली सँकरी सीढी के ऊपर वह बैठता था और एक ही रट थी उस

Parul Sharma

आज का बचपन जाने कहाँ खोगया है अस्तित्व इसका कम्प्यूटर में विलीन हो गया है जो विचरता था खुले आसमान के नीचे जो खेलता था पवन की मस्त मौजों से फैलाकर बाहें समेट लेता था जहाँ की सारी खुशियाँ बढ़ाकर हाथ छू लेता था आँसमान की बुलंदियाँ जो झगड़ता था, रूठता था, मानाता था, हंसता था, रोता था, खेलता था साथ अन्य बचपनों के #nojotoofficial #2liner #nojotohindi #nojotoquotes #यादें #kalakash #panchdoot_social #TST #likho_india #साँस #बालदिवस

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आज का बचपन जाने कहाँ खोगया है
अस्तित्व इसका कम्प्यूटर में विलीन हो गया है
जो विचरता था खुले आसमान के नीचे
जो खेलता था पवन की मस्त मौजों से
फैलाकर बाहें समेट लेता था जहाँ की सारी खुशियाँ 
बढ़ाकर हाथ छू लेता था आँसमान की बुलंदियाँ
जो झगड़ता था, रूठता था, मानाता था, हंसता था,
रोता था, खेलता था साथ अन्य बचपनों के
जो कहता था अपनी भावनाओ को अपने अपार मित्रों के समूहों से
भावनाओं का वह समंदर आज सिमट कर एक बूँद हो गया है।
आज का बचपन...........................विलीन हो गया है
हो गया है कैद एक बंद कमरे में
हो रहा आहत ए.सी., कूलर,पंखे की हवा के थपेड़ों से
फैलाकर बाँह एकांत,उदासी मायूसी समेटता है
बड़ाकर हाथ रिमोट और कीपैड के बटनों को दबोचता है।
हाँ उड़ता है-3, आज वो अंतरिक्ष की असीम ऊँचाईयों में
पर कहाँ कंम्पयूटर के बंद डिब्बे में
आज इसके रिश्ते मित्र टी.वी. कंम्प्यूटर, वीडियो गेम है।
ये आधुनिक बचपन है जो मशीन हो गया है
जो भावना हीन, उमंगहीन हो गया है।
आज का बचपन................. ........विलीन हो गया है।
उठो जागो 'ए बचपन' इस चिरनिन्द्रा से
और समेटो और जुड़ जाओ मित्रों के समूहों से
उड़ो आकाश में, साँस लो खुली हवा में
फैलाकर बांह बढ़ाकर हाथ जीवित कर दो दफ्न बचपन को
नई उड़ान, नई उमंग,नई मुस्कान दो प्रौण हो चले भारत को।
और लौटा दो पुर्न बचपन भारत का भारत को ।
                     पारुल शर्मा आज का बचपन जाने कहाँ खोगया है
अस्तित्व इसका कम्प्यूटर में विलीन हो गया है
जो विचरता था खुले आसमान के नीचे
जो खेलता था पवन की मस्त मौजों से
फैलाकर बाहें समेट लेता था जहाँ की सारी खुशियाँ 
बढ़ाकर हाथ छू लेता था आँसमान की बुलंदियाँ
जो झगड़ता था, रूठता था, मानाता था, हंसता था,
रोता था, खेलता था साथ अन्य बचपनों के

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 32 - क्या किया जाय? सबका उपाय है, किन्तु इस कन्हाई का कोई उपाय नहीं। यह कब क्या करने लगेगा, कब क्या मान बेठेगा, कुछ ठिकाना नहीं है। अब इसका भी कोई उत्तर है कि यह किसी को कहने लगे - 'तू थक गया है,' अथवा किसी के साथ उलझ जाय - 'तूझे भूख लगी है।' कोई कितना भी कहे कि वह थका नहीं है या भूखा नहीं है, किन्तु यह श्याम किसी की सुनता भी है। इसे तो जो धुन चढ गयी बस चढ गयी। फिर यह अपनी करके ही मानने वाला है। सुकुमार कन्हाई शीघ्र थक जाता है। कितने नन्हे कोमल चरण हैं इसके और दौड़ता फुदकता फिरता

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।।श्री हरिः।।
32 - क्या किया जाय?

सबका उपाय है, किन्तु इस कन्हाई का कोई उपाय नहीं। यह कब क्या करने लगेगा, कब क्या मान बेठेगा, कुछ ठिकाना नहीं है। अब इसका भी कोई उत्तर है कि यह किसी को कहने लगे - 'तू थक गया है,' अथवा किसी के
साथ उलझ जाय - 'तूझे भूख लगी है।' कोई कितना भी कहे कि वह थका नहीं है या भूखा नहीं है, किन्तु यह श्याम किसी की सुनता भी है। इसे तो जो धुन चढ गयी बस चढ गयी। फिर यह अपनी करके ही मानने वाला है।

सुकुमार कन्हाई शीघ्र थक जाता है। कितने नन्हे कोमल चरण हैं इसके और दौड़ता फुदकता फिरता

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 30 - अपने लिए 'दादा!' कन्हाई बहुत छोटा था तब से विशाल के कन्धों पर बैठता आया है। गोपियाँ तो हंसी में विशाल को कृष्ण का घोड़ा कहती हैं। अब भी यह विशाल के समीप आता है तो उसके कंधेपर ही बैठता है। दूसरे सखाओं के समान विशाल से सटकर बैठना इसने सीखा नहीं है! अब दौड़ा-दौड़ा आया है और विशाल के कन्धे पर अपने दोनों पैर उसके आगे की ओर करके, उसका सिर पकड़कर बैठ गया है। विशाल सचमुच शरीर से विशाल है। आयु में दाऊ से छोटा होने पर भी ऊचाईं में उससे बड़ा है। जितना ऊँचा, उतना ही तगड़ा। विशाल का आक

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|| श्री हरि: ||
30 - अपने लिए

'दादा!' कन्हाई बहुत छोटा था तब से विशाल के कन्धों पर बैठता आया है। गोपियाँ तो हंसी में विशाल को कृष्ण का घोड़ा कहती हैं। अब भी यह विशाल के समीप आता है तो उसके कंधेपर ही बैठता है। दूसरे सखाओं के समान विशाल से सटकर बैठना इसने सीखा नहीं है! अब दौड़ा-दौड़ा आया है और विशाल के कन्धे पर अपने दोनों पैर उसके आगे की ओर करके, उसका सिर पकड़कर बैठ गया है।

विशाल सचमुच शरीर से विशाल है। आयु में दाऊ से छोटा होने पर भी ऊचाईं में उससे बड़ा है। जितना ऊँचा, उतना ही तगड़ा। विशाल का आक

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 28 - स्पर्धा कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो। अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी। 'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी

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|| श्री हरि: || 
28 - स्पर्धा

कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो।

अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी।

'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी

Anil Siwach

8 - संकोच में || श्री हरि: || #Books

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8 - संकोच में 
 || श्री हरि: ||
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