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Biikrmjet Sing

रूपवंत होये नाही मोहय प्रभ की जोत सगल घट सोहै।।

अर्थ:- किसीके शरीर की बनावट व मुखड़ा कितना भी सुंदर व करूप भी क्यों न हो पर परमात्मा को वह नहीं शोभता यानी शरीरिक रूप नहीं भाता बल्कि जो नेत्रों में परमात्मा ने अपनी जोत रखी है वह जरूर परमात्मा को भाती है जो गुर ले कर नाम धयाति है और जो सभी घटो में यानी शरीरों में एक जोत विद्यमान है।।

©Biikrmjet Sing #जोत

Biikrmjet Sing

मन तू जोत सरूप हैं अपना मूल पछाण।। मन हर जी तेरै नाल है गुर मत्ती रंग मान।।

अर्थ:- हे मन तू परम् प्रकाश का स्वरूप प्रकाश ही है तू इस शरीर में आ कर पवन द्वारा सुरों में मिल गया और खुद को शरीर समझने लगा तू अपना मूल जो के प्रकाश है वह पहचान।। हे मन वह परमात्मा रूपी प्रकाश तेरी नेत्रों रूपी खिड़की के साहमने हैं तो वह नाम धयाने का सन्तो खालसे से गुर यानी योगिक कला ले कर उस परमात्मा से मिलन-दर्शन की खुशियाँ यानी रंग मान।।🙏

©Biikrmjet Sing #जोत

Biikrmjet Sing

ਏ ਨੇਤ੍ਰਹੁ ਮੇਰਿਹੋ ਹਰਿ ਤੁਮ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਧਰੀ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੇਖਹੁ ਕੋਈ ॥
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਸਾਨੂੰ ਸਾਡੇ ਮਨ (ਜੋਤ)ਬਾਰੇ ਸਮਝਾ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਜੋਤ ਜੋ ਕਿ ਮਨ ਹੈ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸਰੀਰ ਚ ਕਿਹੜੀ ਜਗਾ ਵਸਦਾ ਹੈ ਉਹ ਜਗਾ ਹੈ ਸਾਡੇ ਨੇਤਰ॥ ਜੋਤ ਮਾਲਕ ਨੇ ਨੇਤਰਾਂ ਚ ਟਿਕਾਈ ਹੈ॥ ਹੁਣ ਨੇਤਰਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀ ਹੈ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਹਰੀ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਕੁਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਵੇਖਣਾ ਹੈ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੇਖਹੁ ਕੋਈ ਨਦਰੀ ਹਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥
ਕਿਉਕਿ ਜੋਤ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਹੈ ਨੇਤਰਾਂ ਨਾਲ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਸਰੀਰ ਦੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਅੰਗ ਨਾਲ॥ਨੇਤਰਾਂ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਇਸ ਖਾਲੀ-ਖਲਾਅ ਚ ਕੇਵਲ ਤੇ ਕੇਵਲ ਹਰੀ ਨੂੰ ਵੇਖਣਾ ਹੈ ਤੇ ਨੇਤਰਾਂ ਨਾਲ ਹਰੀ ਨੂੰ  ਵੇਖ-ਵੇਖ ਕੇ ਨਿਹਾਲ ਹੋਣਾ ਹੈ॥
ਏਹੁ ਵਿਸੁ ਸੰਸਾਰੁ ਤੁਮ ਦੇਖਦੇ ਏਹੁ ਹਰਿ ਕਾ ਰੂਪੁ ਹੈ ਹਰਿ ਰੂਪੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥
ਇਹ ਸੰਸਾਰ ਸਾਨੂੰ ਦਿੱਸਦਾ ਜ਼ਹਿਰ ਹੈ ਪਰ ਹੈ ਹਰੀ ਦਾ ਰੂਪ ਪਰ ਹਰੀ ਦਾ ਰੂਪ ਨਜ਼ਰ ਕਦੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ...
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝਿਆ ਜਾ ਵੇਖਾ ਹਰਿ ਇਕੁ ਹੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
ਗੁਰ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਸਦਕਾ ਜਦੋਂ ਹਰੀ ਨੂੰ ਬੁੱਝ ਲਿਆ ਤਾਂ ਜਿੱਥੇ ਵੀ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕੇਵਲ ਹਰੀ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਨਿਰ-ਆਕਾਰ ਰੂਪ ਚ ਹੋਰ ਕੁਝ ਨਜ਼ਰ ਨਹੀੰ ਆਉਂਦਾ॥
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਹਿ ਨੇਤ੍ਰ ਅੰਧ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਦਿਬ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਹੋਈ ॥੩੬॥
ਹੁਣ ਆਪਾਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਅੱਖਾਂ ਹੁੰਦੇ ਵੀ ਗੁਰਬਾਣੀ ਸਾਨੂੰ ਅੰਨੇ ਕਹਿ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਜੋਤ ਦੋ ਨੇਤਰਾਂ ਵਸਣ ਕਰਕੇ ਦੋ ਦਿ੍ਸਟ  ਦੋ ਮਨ ਦੁਚਿੱਤੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਮਨ ਆਪਣੇ ਮੂਲ ਸਰੂਪ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਪਾ ਰਿਹਾ ਤੇ ਨੇਤਰਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਕਾਸ਼ ਨਹੀਂ ਦਿੱਸਦਾ॥ ਮਨ ਨੂੰ ਸੱਚਾ ਗੁਰ ਪਾ੍ਪਤ ਹੋਣ ਤੇ ਮਨ ਦੀ ਦਿੱਬ ਦਿ੍ਸਟੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਾਨੂੰ ਪ੍ਕਾਸ਼ ਨਜ਼ਰ ਆਉਣਾ ਸੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ॥
🌹🙏🏻🌹

©Biikrmjet Sing #जोत

Prashant Singh

किसान Pinky Kumari #कविता

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मेरे देश की धरती, सोना उगले

धरती का सीना चीर किसान
पीला सोना उगाता है।
तन का पसीना बहा के किसान
रक्त को पानी बना फसलें उगाता है।
खेतों में खड़े फसलों की बालियां 
हवा में समृद्धि की गाना सुनाती हैं।
खेतों की जमीन जोत जोत
मिट्टी को हलवा सा बनाता है।
नन्हे मुन्ने बीज पौधों को रोप रोप
धरती का श्रृंगार करते हैं।
पत्थर सी बंजर भूमि
बाग बगीचे बनाते है।
मिट्टी में पैसों को डाल
अन्न के रूप में देशभक्ति उगाते हैं।
विपत्तियों के कालचक्र बाढ़ सुखाड़ बनके 
किसान कहां डर के बैठ जाते हैं।
मर जाता है अन्नदाता भी कभी
जब अन्न को भोजन नहीं समझा जाता है।
सर्वजन सुखाय प्रायः किसान राष्ट्रभक्त कहलाता है
जाने कितने कीट पतंग चूहे उसका अन्न खाता है।
बिकती हैं अन्न की बोरियां कूड़े के भाव लगते हैं
सड़क समाज बाजार पर प्रायः किसान बोझ सा लगता है।

नंगे पांव सर पर गामछी
सादा जीवन सुखा आहार।
दुर्दशा में है आज किसान
बन गया है राजनीति का अचार।
अभाव सदा इनके चौखट पलता है
बैंकों की नजर में सदा खटकता रहता है।
मकर संक्रांति लोहड़ी वैशाखी
जब लाए घर खुशहाली।
बसंत पंचमी उगड़ी गुडी पड़वा
समृद्धि की है निशानी।
देख तमाशा दुनिया की फसलों का पर्व सब मनाते हैं
जब धरती से उगले सोना, हो गए तीज त्यौहार पर्व मेला।
हर मौसम की मार सह पीला सोना काटता है
देख तमाशा विधाता की फिर भी किसान भूखा सोता है। किसान Pinky Kumari

Prashant Singh

पीला सोना Madhavi Choudhary #कविता

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धरती का सीना चीर किसान
पीला सोना उगाता है।
तन का पसीना बहा के किसान
रक्त को पानी बना फसलें उगाता है।
खेतों में खड़े फसलों की बालियां 
हवा में समृद्धि की गाना सुनाती हैं।
खेतों की जमीन जोत जोत
मिट्टी को हलवा सा बनाता है।
नन्हे मुन्ने बीज पौधों को रोप रोप
धरती का श्रृंगार करते हैं।
पत्थर सी बंजर भूमि
बाग बगीचे बनाते है।
मिट्टी में पैसों को डाल
अन्न के रूप में देशभक्ति उगाते हैं।
विपत्तियों के कालचक्र बाढ़ सुखाड़ बनके 
किसान कहां डर के बैठ जाते हैं।
मर जाता है अन्नदाता भी कभी
जब अन्न को भोजन नहीं समझा जाता है।
सर्वजन सुखाय प्रायः किसान राष्ट्रभक्त कहलाता है
जाने कितने कीट पतंग चूहे उसका अन्न खाता है।
बिकती हैं अन्न की बोरियां कूड़े के भाव लगते हैं
सड़क समाज बाजार पर प्रायः किसान बोझ सा लगता है।

नंगे पांव सर पर गामछी
सादा जीवन सुखा आहार।
दुर्दशा में है आज किसान
बन गया है राजनीति का अचार।
अभाव सदा इनके चौखट पलता है
बैंकों की नजर में सदा खटकता रहता है। पीला सोना Madhavi Choudhary


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