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Funny Singh🐼

I know mere jaise log aur bhi ho sakte hain is jahan me🤣🤣🤣🤣 Bas hajiri laga do😂😂😂😂 #funnysingh पंखा😂 #कम्बल #Funny #समझदार #नादानियाँ #Humour

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अर्ज किया है!

इस समझदारी भरे जमाने में,
मैं कुछ नादानियाँ आज भी करता हूँ!😌

वाह-वाह...........वाह-वाह!
अबे सुन तो ले निठल्ले!😂

इस समझदारी भरे जमाने में,
मैं कुछ नादानियाँ आज भी करता हूँ।😌

पंखे को करता हूँ फुल स्पीड पर,
और कम्बल ओढ़ के सोता हूँ।😴🤣 I know mere jaise log aur bhi ho sakte hain is jahan me🤣🤣🤣🤣
Bas hajiri laga do😂😂😂😂

#funnysingh  #पंखा😂
#कम्बल  #funny #समझदार #नादानियाँ #humour

Subhasish Pradhan

चार दीवारों के भीतर वो कम्बल ओढ़े
गर्मी का मजा ले रहा है
दीवारों के बाहर बूढा फ़क़ीर
दोनो हातों से सीने को ढका बैठा है ।।

ये ठंड कहीं पे कमाल तो कहीं पे कहर बन रहा है... #थंड #कहर #दिवार #कमाल #कम्बल
#Yqdidi #Yqbaba

Vibha Katare

सावन की फुहार  की ठण्डक मौसम में बरक़रार ।
रात भर कम्बल ओढ़ाती अपनी बिटिया को,
बिटिया को कहाँ भान कम्बल की ऊष्मा का,
उसको तो माँ के आँचल से परे दुनियाँ भाती ही नहीं अभी,
वह हटा देती कम्बल पैर से अपने,
माँ फिर ओढ़ाती, वह फिर हटाती,
चलता यही क्रम रात भर,
जागती जागती सी दोनों सोती या 
सोती सोती जागती दोनों रात भर,
कम्बल के चक्रव्यूह से बचकर ,
सुबह सुबह
बिटिया लेती अंगड़ाई खुलकर 
माँ की गोद में.. #yqdidi
#maabeti 
#कम्बल 
#बिटिया

कृष्णा

ऐसा कई दफे किया है हमने,
रिश्तों को जब जब कपकपी छूटती,
ख़ामोशी का कंबल, तब तब
ओढ़ लिया हमने

©Krishna #कम्बल....✍️

Aditya Gupta

#सर्दी  भी कुछ इस  तरह इम्तिहान लेती  है।
किसका कितना बड़ा आँचल है जान लेती है।

फ़टी चादरें ओढ़ लेता है #कम्बल की जगह -
उसकी हर सूरते हाल गरीबी पहचान लेती है।

#कोहरा छाया है मगर वो है आँखों के ऊपर,
ज़िन्दगी के बदले में ये ठंडी जी जान लेती है।

यूँ मुझे धोखा हुआ होंठों की #कँपकँपी देख,
जैसे लपलपाती तीर वो धनुष पे तान लेती है।

कोई  मौसम आए तो ये मौसम विदा हो जाये,
गुनगुनी #धूप "आदित्य"की बात मान लेती है।

आदित्य गुप्ता

©Aditya Gupta #coldnights

Hiren. B. Brahmbhatt

कार्य है जिनका विध्न उत्पन्न करना, 
     ऐसे नकारात्मक और जलने वालो से मत घबराओ ,
             उनकी ऊर्जा है आग की लपटों की तरह,
               आपको तो काला कम्बल बन जाना है ,
आग की लपटों को रोकने का होंसला जो रखता है,
    कोई रंग उसे अवशोषित नहीं कर सकता .... #नकारात्मक #विध्न #उर्जा #कम्बल #रंग #हौसला

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 13 - हृदय परिवर्तन 'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था। 'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
13 - हृदय परिवर्तन

'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था।

'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 7 – अमोह 'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।' मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
7 – अमोह

'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।'

मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 5 – अक्रोध 'क्रोधं कामविवर्जनात्' हम सब उन्हें दादा कहते थे। सचमुच वे हमारे दादा - बड़े भाई थे। सगे बड़े भाई भी किसी के इतने स्नेहशील केदाचित् ही होते हों। उनका ध्यान हम सबों की छोटी-से-छोटी आवश्यकता पर रहता था। किसे कब क्या चाहिये। किसे क्या-क्या साथ ले जाना चाहिये।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
5 – अक्रोध

'क्रोधं कामविवर्जनात्'

हम सब उन्हें दादा कहते थे। सचमुच वे हमारे दादा - बड़े भाई थे। सगे बड़े भाई भी किसी के इतने स्नेहशील केदाचित् ही होते हों। उनका ध्यान हम सबों की छोटी-से-छोटी आवश्यकता पर रहता था। किसे कब क्या चाहिये। किसे क्या-क्या साथ ले जाना चाहिये।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 4 - अकाम 'असंकल्पाज्जयेत् कामम्' काम जानामि ते मूलं संकल्पात् सम्भविष्यसि।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
4 - अकाम

'असंकल्पाज्जयेत् कामम्'

काम जानामि ते मूलं संकल्पात् सम्भविष्यसि।
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