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Sandhya Maurya
उत्तरकाशी में गोमुख के मुहाने से निकलते हुएअलकनंदा और भागीरथी मिलकर जब आगे बढ़ती हैं तो होता है उद्गम पतित-पावनी निर्मल गंगा का।जो आगे बढ़ते हुए प्रदान करती है सद्भावना समस्त प्राणियों को। गंगा का अविरल, निरंतर अर्थात बिना रुके हुए बहने वाला रूप, श्वेत रंग लिए हुए प्रदर्शित करता है उसकी शांति, नम्रता और विनम्रता को। जो बिना मार्ग से भटके, असीमित पर्वतों और चट्टानों को पार करते हुए धरती पर नवजीवन का संचार करती है। इसलिए तो इसे माँ कहा जाता है। जो मोह रूपी भावों से परे अपनी ममतामयी कलरव की गुंजन से आह्लादित करती है समस्त प्राणी जीवन को। माँ जैसे अपने सारे बच्चों पर एक समान प्रेम लुटाती है और उन्हें एक साथ, एक लय में जोड़े रखती है ठीक उसी तरह माँ गंगा भी प्रयाग में यमुना और अदृश्य सरस्वती का 'संगम' करते हुए उन्हें आत्मसात करते हुए आगे काशी की तरफ बढ़ती हैं, एक सकारात्मक विचार करके आगे की दिशा में गतिमान और प्रवाहित होने, लोगों को बंधुत्व एवं सौहार्द्र का मतलब समझाने हेतु। ©Sandhya Maurya उत्तरकाशी में गोमुख के मुहाने से निकलते हुएअलकनंदा और भागीरथी मिलकर जब आगे बढ़ती हैं तो होता है उद्गम पतित-पावनी निर्मल गंगा का।जो आगे बढ़ते हुए प्रदान करती है सद्भावना समस्त प्राणियों को। गंगा का अविरल, निरंतर अर्थात बिना रुके हुए बहने वाला रूप, श्वेत रंग लिए हुए प्रदर्शित करता है उसकी शांति, नम्रता और विनम्रता को। जो बिना मार्ग से भटके, असीमित पर्वतों और चट्टानों को पार करते हुए धरती पर नवजीवन का संचार करती है। इसलिए तो इसे माँ कहा जाता है। जो मोह रूपी भावों से परे अपनी ममतामयी क
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