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Divyanshu Pathak

💠 क्रमशः - 04 💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠🙏 एक होड़ में चल रहा है। स्पर्धा ने मूल्यों को समेट दिया है। नकल का एक दौर ऎसा चला है कि व्यक्ति की आंख खुद के जीवन के बजाए दूसरे पर टिकी होती है, जिसकी वह नकल करना चाहता है। जैसे कि शिक्षित लड़कियां भी लड़कों की नकल करना चाहती हैं। अत: लड़कियों के गुण ग्रहण ही नहीं करतीं। लड़का बन नहीं सकतीं। अत: यह आदमी की हवस का पहला शिकार होती हैं। भले ही इस कारण ऊंचे पदों तक पहुंच भी जाए, किन्तु सुख न इनको मिलता, न ही इनके माता-पिता को। बस, विकास की धारा में बहते रहते हैं। 💠💠💠💠💠💠💠🌷🌷🌷 #विवाह #गुलाब #संस्कार #शिक्षा #पंछी #संस्कृति #अंतरजातीय #पाठकपुराण

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💠 अंतरजातीय विवाह की उलझन क्रमशः 04 💠

प्रश्न यह है कि यदि हम विकसित हो रहे हैं,
शिक्षित हो रहे हैं, तो इसका लाभ
स्त्री को क्यों नहीं मिल रहा।
शिक्षित व्यक्ति निपट स्वार्थी भी
होता जा रहा है और उसे
नुकसान करना भी अधिक आता है।
अनपढ़ औरतें कन्या भ्रूण हत्या के लिए
बदनाम इसलिए हो गई कि
उनको गर्भस्थ शिशु के लिंग की
जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
आंकड़े साक्षी हैं कि ऎसी हत्याओं में शिक्षित महिलाएं
अधिक लिप्त हैं और चर्चा भी नहीं होती।
ये हत्याएं इस बात का प्रमाण तो हैं ही कि
नारी आज भी स्वयं को लाचार और
अत्याचारग्रस्त मानती है।
अपनी कन्या को
इस पुरूष के हवाले नहीं करना चाहती। 💠 क्रमशः - 04 💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠🙏
एक होड़ में चल रहा है। स्पर्धा ने मूल्यों को समेट दिया है। नकल का एक दौर ऎसा चला है कि व्यक्ति की आंख खुद के जीवन के बजाए दूसरे पर टिकी होती है, जिसकी वह नकल करना चाहता है। जैसे कि शिक्षित लड़कियां भी लड़कों की नकल करना चाहती हैं। अत: लड़कियों के गुण ग्रहण ही नहीं करतीं। लड़का बन नहीं सकतीं। अत: यह आदमी की हवस का पहला शिकार होती हैं। भले ही इस कारण ऊंचे पदों तक पहुंच भी जाए, किन्तु सुख न इनको मिलता, न ही इनके माता-पिता को। बस, विकास की धारा में बहते रहते हैं।
💠💠💠💠💠💠💠🌷🌷🌷

Divyanshu Pathak

💠 क्रमशः - 03 💠 लड़की भी हजार गलतियां करने के बाद भारतीय है। मन में कुछ लज्जा का भाव होता है। जब किसी सभ्य परिवार की लड़की असभ्य परिवार से जुड़ जाती है, तब तो ताण्डव ही कुछ और होता है। किसी असभ्य परिवार की लड़की सभ्य और समृद्ध परिवार में चली जाती है, तब एक अलग तरह के अहंकार की टकराहट शुरू हो जाती है। जिन जातियों में नाता होता है, वहां मन कोई मन्दिर नहीं रह जाता। लड़की के दो-तीन तलाक हो जाएं तो लाखों का किराया वसूल लेते हैं मां-बाप। ऊपर से कानून एकदम अंधा। परिस्थितियों की मार से दबे मां-बाप के लि #विवाह #समाज #संस्कार #शिक्षा #पंछी #संस्कृति #अंतरजातीय #पाठकपुराण

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💠 अंतरजातीय विवाह की उलझन क्रमशः - 03 💠


मात्र कानून बना देना विकास नहीं है।
अभी मन्दिर-मस्जिद के झगड़ों से
हम बाहर नहीं आए।
आरक्षण ने जातियों के नाम पर
अनेक विरोध के स्वर खड़े कर दिए।
जब हमारी सन्तान हमारे साथ
किसी जाति के विरोध में लड़ती है,
हिंसक हो जाती है, तब क्या वह लड़का
विरोधी जाति की लड़की का
पत्नी रूप में सम्मान कर सकेगा।
 💠 क्रमशः - 03 💠
लड़की भी हजार गलतियां करने के बाद भारतीय है। मन में कुछ लज्जा का भाव होता है। जब किसी सभ्य परिवार की लड़की असभ्य परिवार से जुड़ जाती है, तब तो ताण्डव ही कुछ और होता है। किसी असभ्य परिवार की लड़की सभ्य और समृद्ध परिवार में चली जाती है, तब एक अलग तरह के अहंकार की टकराहट शुरू हो जाती है। जिन जातियों में नाता होता है, वहां मन कोई मन्दिर नहीं रह जाता। लड़की के दो-तीन तलाक हो जाएं तो लाखों का किराया वसूल लेते हैं मां-बाप। ऊपर से कानून एकदम अंधा। परिस्थितियों की मार से दबे मां-बाप के लि

Divyanshu Pathak

💠 क्रमशः -02 💠 चूंकि शिक्षा नौकरी के अतिरिक्त अधिक विकल्प नहीं देती, अत: परिवार का विघटन अनिवार्य हो गया। दादा-दादी बिछुड़ गए। नई बहुएं सास-ससुर से भी मुक्त रहना चाहती हैं, तो बच्चों को संस्कार देने से भी। स्कूल, होम वर्क के सिवाय बच्चों के लिए उसके पास न समय है, न ही वह ज्ञान जिससे बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण होता है। शिक्षा ने उसके मन को भी समानता के भाव के नाम पर यहां तक प्रभावित कर दिया कि वह ‘मेरे घर में लड़के-लड़की में कोई भेद नहीं है’ का आलाप तार स्वर में गाती है। इससे कोई अधिक क्रूर मां #विवाह #समाज #पंछी #संस्कृति #अंतरजातीय #पाठकपुराण

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💠 अंतरजातीय विवाह की उलझन - 02 💠

आज शिक्षा की आवश्यकता और भूत ने
इस समस्या में ‘आग में घी’ का काम किया है ।
भौतिकवाद, विकासवाद, स्वतंत्र पहचान,
समानता की भ्रमित अवधारणा आदि ने
व्यक्ति को शरीर के धरातल पर भी लाकर
खड़ा कर दिया और अपने जीवन के फैसले
मां-बाप से छीनकर अपने हाथ में लेने
शुरू कर दिए अधिकांशत: माता-पिता
उसके मार्गदर्शक बनते नहीं जान पड़ते। 💠 क्रमशः -02 💠
चूंकि शिक्षा नौकरी के अतिरिक्त अधिक विकल्प नहीं देती, अत: परिवार का विघटन अनिवार्य हो गया। दादा-दादी बिछुड़ गए। नई बहुएं सास-ससुर से भी मुक्त रहना चाहती हैं, तो बच्चों को संस्कार देने से भी। स्कूल, होम वर्क के सिवाय बच्चों के लिए उसके पास न समय है, न ही वह ज्ञान जिससे बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण होता है। शिक्षा ने उसके मन को भी समानता के भाव के नाम पर यहां तक प्रभावित कर दिया कि वह ‘मेरे घर में लड़के-लड़की में कोई भेद नहीं है’ का आलाप तार स्वर में गाती है। इससे कोई अधिक क्रूर मां

Divyanshu Pathak

💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠 हमारा देश आज एक ऎसे मार्ग पर चल पड़ा है जिसकी परिणति दुख के सिवाय कुछ और नहीं है। हर व्यक्ति उस मार्ग पर चलकर गौरवान्वित महसूस करता है। उसके पास कोई विकल्प भी नहीं है। हमारे सामने तथ्य हैं, सारे आंकड़े हैं, दर्शन है, अनुभव हैं, किन्तु हमारा अहंकार या लाचारी हमें इनमें से किसी को स्वीकारने नहीं देती। समाज और परिवारों में अनावश्यक तनाव, वैमनस्य बढ़ता जा रहा है। यह नया रोग है अन्तरजातीय विवाह। 💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠 इसको विकासवादी दृष्टिकोण की पैदाइश माना तो जाता है, किन्तु जीना उनके बीच पड़ता है, #संस्कार #शिक्षा #पंछी #भारतीय_संस्कृति #अंतरजातीय #पाठकपुराण

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💠 अंतरजातीय विवाह की उलझन 💠


अन्तरजातीय विवाह में
यूं तो खराब कुछ नहीं दिखाई देता।
जिसको दिखाई देगा
वह दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख है।
जब लड़का-लड़की दोनों राजी हैं,
तब किसी को अच्छा-बुरा क्यों लगना चाहिए ?
लेकिन जो कुछ नजारा
अगले कुछ महीनों में सामने आता है,
उसे देखकर मानवता पथरा जाती है।
सारा समाज बीच में कूद पड़ता है।
अनेक बाध्यताएं,
जिनमें धर्म परिवर्तन तक की भी हैं,
अपने मुखौटे दिखा-दिखाकर चिढ़ाती हैं।
कट्टरता, संकीर्णता और निर्दयता से
सारा वातावरण कम्पित हो जाता है।
लड़की के मां-बाप की स्थिति
बयान करना सहज नहीं है। 💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠
हमारा देश आज एक ऎसे मार्ग पर चल पड़ा है जिसकी परिणति दुख के सिवाय कुछ और नहीं है। हर व्यक्ति उस मार्ग पर चलकर गौरवान्वित महसूस करता है। उसके पास कोई विकल्प भी नहीं है। हमारे सामने तथ्य हैं, सारे आंकड़े हैं, दर्शन है, अनुभव हैं, किन्तु हमारा अहंकार या लाचारी हमें इनमें से किसी को स्वीकारने नहीं देती। समाज और परिवारों में अनावश्यक तनाव, वैमनस्य बढ़ता जा रहा है। यह नया रोग है अन्तरजातीय विवाह।
💠💠💠💠💠💠💠💠💠💠
इसको विकासवादी दृष्टिकोण की पैदाइश माना तो जाता है, किन्तु जीना उनके बीच पड़ता है,


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