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radhe krishan

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एक इबादत

जाग रहा यह कौन धनुर्धर जब कि भुवन भर सोता है ? ये पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त की रचना 'पंचवटी' से है। गुप्त जी ने यह लखनलाल के लिए लिखा है। भुवन का अर्थ होता है संसार यह कौन धनुर्धर है जो जग रहा है जबकि पूरा संसार सो रहा है ? #विवाह #YourQuoteAndMine #हिंदी_साहित्य #लक्ष्मण #मैथिलीशरणगुप्त

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त्रेता का एक -एक पात्र ,
कण -कण मर्यादा सिखलाता है,
लखनलाल का धैर्य ,
त्याग,निश्छल -निस्वार्थ और सेवा भाव,
भाई -भाभी के प्रति समर्पण ,
माफ करना !
किन्तु 
मेरे लिए प्रभु श्री राम से भी श्रेष्ठ लक्ष्मण भईया नज़र आते है...!! जाग रहा यह कौन धनुर्धर
जब कि भुवन भर सोता है ?

ये पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त की रचना 'पंचवटी' से है। गुप्त जी ने यह लखनलाल के लिए लिखा है।

भुवन का अर्थ होता है संसार

यह कौन धनुर्धर है जो जग रहा है जबकि पूरा संसार सो रहा है ?

SingerLakshman Sahani

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true line

लिख कर शेर -ए- मोहब्बत ना मुझे गालिब बनना है..
जगा दूँ कलम से लोगों को , बस वैसा काबिल बनना हैं.......✍
#लक्ष्मण कुमार #

©true line #seaside

Poetry with Avdhesh Kanojia

#मेरी_दृष्टि ............ शोशल मीडिया पर विजया दशमी आते आते प्रतिवर्ष एक आधारहीन शरारती तत्वों द्वारा रचित एक सन्देश बहुत प्रसारित होता है। जिसमें मृत्यु शैय्या पड़ा रावण उनसे कहा है कि *वह उनसे वर्ण में बड़ा है। *आयु में बड़ा है। *उसका कुटुम्ब श्रीराम के कुटुम्ब से बड़ा है। *वह उनसे अधिक वैभवशाली है। #विचार

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मेरी दृष्टि
✍️अवधेश कनौजिया© #मेरी_दृष्टि
............

शोशल मीडिया पर विजया दशमी आते आते प्रतिवर्ष एक आधारहीन शरारती तत्वों द्वारा रचित एक सन्देश बहुत प्रसारित होता है। जिसमें मृत्यु शैय्या पड़ा रावण उनसे कहा है कि 
*वह उनसे वर्ण में बड़ा है।
*आयु में बड़ा है।
*उसका कुटुम्ब श्रीराम के कुटुम्ब से बड़ा है।
*वह उनसे अधिक वैभवशाली है।

Ravi Kumar

hiii......! #Shayari #सुनील

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******कलियुग  का  लक्ष्मण*******

विनम्र निवेदन:-एक बार पढियेगा जरूर,,
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
-------------------

" भैया, परसों नये मकान पे हवन है। 
छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है,
 मैं गाड़ी भेज दूँगा।"  
छोटे भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।
 " क्या छोटे, किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो ?"
      " नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।"
   " अपना मकान", भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।
        "छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।"
      " बस भैया ", कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।
         " अपना मकान" ,  " बस भैया "  ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।
           भरत और लक्ष्मण, दो सगे भाई ,और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब  पन्द्रह साल। 
लक्ष्मण जब करीब सात साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। 
अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली, कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।
   प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा नहीं किये। 
जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा। 
  पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी ,और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। 
वैसे भी अब भरत के पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।
 मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली
, "  देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया। 
कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं आये।
 दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से छिपा के रखी।"
   इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो गयी।
 मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर। 
हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन कहा, " देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से  (portion) तैयार कराये हैं। 
पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।"
   मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे,
 जिन्हें  उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका। 
          तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई,
 " हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।"
   लक्ष्मण के दोस्तों ने कहा, " पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।" 
          यह सुन लक्ष्मण बोले, 
" इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े भाई भरत भी हैं। 
आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत।
 इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक मेरा।"
  हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, 
" भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे ।"
         पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे,
 जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान न था 

भरत जैसे आज भी
मिल जाते हैं इन्सान
पर लक्ष्मण जैसे बिरले ही
मिलते  इस जहान

 काश सभी को ऐसे भाई मिले। 
रिश्तों को संजो कर रखिये,

याद रक्खिये, ये आपके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है,

पैसे तो आते रहेंगे जाते रहेंगे लेकिन रिश्ता एक बार गया तो दोबारा नही आयेगा।
                        #सुनील साहू # hiii......!

Rajat Singh

#OpenPoetry कल प्रभू श्री राम दिखे थे मुझको मेरे सपने में , बैठ के संग लक्ष्मण के फिर वो बोले मेरे सपने में 
की काश अगर मैं राम ना होता ,तो सीता का अपमान ना होता 
मां कैकेयी के हाथों से , पती मृत्यु का पाप ना होता 
मेरे अनुज भ्रात लक्ष्मण से , सुपर्णखा पे वार ना होता 
खुद मेरे पुत्रों लव और कुश से , अश्वमेघ में हार ना होता
ये सुन के लक्ष्मण , बोल पड़े 
हे भाई , हे भाई मेरे राम सुनो -
ना रावण हूँ मैं , ना राम ही हूँ , बस मेरे ज्येष्ठ भ्रात का छोटा सा अभिमान ही हूँ 
ना तुम जैसा पुरषोत्तम हूँ , ना उस जैसा ही ज्ञानी हूँ 
ना मुझको वन में जाना था 
ना शक्ति बाण ही खाना था
ना पत्नी वियोग ही सहना था 
ना सुपर्णखा से , कुछ कहना था
लक्ष्मण रेखा जो खींची थी वो बन्दिश नहीं वो रक्षा थी 
मेरी तो कुछ ना गलती थी , मुझको भी ताने मारे हैं 
हे भाई - मेरे राम कहो, कैसे ये तुमको पूजेंगे 
ये हनुमान कहाँ पाएंगे , जिनके सीने में राम बसें 
ये रावण के सब वंशज हैं ये रावण को ही पूजेंगे.....
हे भाई मेरे राम - कहो कैसे ये तुमको पूजेंगे
ये रावण के सब वंशज हैं , ये रावण को ही पूजेंगे

अये रावण तू तो अमर रहे, श्री राम को सबने छोड़ दिया 
श्री राम बिठा के मंदिर में , रावण को खुल्ला छोड़ दिया
तब जला के लंका आये थे , अब अपने ही घर की बारी है
ना भाई भाई की सुनता है , ना पुत्र पिता से डरता है 
सब रावण के ही वंशज हैं , सब रावण से अभिमानी हैं 
सुपर्णखा के नाम पे ये , सीता को हर भी लाएंगे 
अपने झूठे आदर्शों को फिर , तुमको ये दिखलाएंगे 
गर प्रिय इतनी वो बहना थी , तो उसके पती को क्यों मार दिया?
ये प्रश्न नहीं वो पूछेंगे , ना तुमको कुछ बतलायेंगे -
रावण को श्राप तो ये भी था , गर करे दुराचार किसी स्त्री से तो सब सिर उसके फट जाएंगे 
सीता इसलिए सुरक्षित थी , सीता को हाथ लगाए ना रावण इतना नहीं अच्छा था
पर ये रावण से ही ढोंगी हैं , ये रावण को ही पूजेंगे
सब नष्ट भले ही हो जाए , ये लोभ ना अपना छोड़ेंगे
ये रावण से ही लोभी हैं , ये रावण को ही पूजेंगे
दस शीश तेरे ये क्यों काटें , एक शीश इनका भी इश्मे है
सब रावण के ही वंशज हैं , सब रावण को ही पूजेंगे। #OpenPoetry #RavanKeVansaj

Dharmendar Saroj

एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम में आया और बोला कि बाबा आप सब का ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नही है तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम में रह सकता हूँ ? बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ हैँ। तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा। उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर ज #कहानी

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एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम में आया और बोला कि बाबा आप सब का ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नही है तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम में रह सकता हूँ ?

बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम  क्या है ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ हैँ।

तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा।

उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना हैँ तुम मेँ से कौन कौन मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मेँ रुकेगा ?

संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की हम आपके साथ चलेंगे.! क्योँकि उनको पता था की यहाँ आश्रम मेँ रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये सभी बोले की हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे।

अब संत सोच मेँ पड़ गये की किसे साथ ले जाये और किसे नहीँ क्योँकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था।



बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैँ यहीँ आश्रम पर रुक जाता हूँ।
संत ने कहा ठीक हैँ पर तुझे काम करना पड़ेगा आश्रम की साफ सफाई मे भले ही कमी रह जाये पर ठाकुर जी की सेवा मे कोई कमी मत रखना।

रामदास ने संत से कहा की बाबा मुझे तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीँ आती आप बता दिजिये के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैँ कर दूंगा।

संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये वहाँ उस मंदिर मे राम दरबार की झाँकी थी। श्रीराम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी थे।

संत ने बालक रामदास को ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है सब सिखा दिया।

रामदास ने गुरु जी से कहा की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो क्योँकि अगर रिश्ता पता चल जाये तो सेवा करने मेँ आनंद आयेगा।

उन संत ने बालक रामदास कहा की तू कहता था ना की मेरा कोई नहीँ हैँ तो आज से ये राम जी और सीता जी तेरे माता-पिता हैँ।

रामदास ने साथ मेँ खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास मेँ खड़े है वो कौन है ?

संत ने कहा ये तेरे चाचा जी है और हनुमान जी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या है।

रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा। संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये।

आज सेवा का पहला दिन था, रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया ,आश्रम की साफ़ सफाई की,और भिक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया।


रामदास ने श्री राम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैँ भी खाऊँगा।

रामदास को लगा की सच मेँ भगवान बैठकर खायेंगे. पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी।

तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना हैँ तो शरमा रहेँ होँगे। रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मेँ खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पडा था।

अब तो रामदास रोने लगा की मुझसे सेवा मे कोई गलती हो गई इसलिये खाना नहीँ खा रहेँ हैँ !
और ये नहीँ खायेंगे तो मैँ भी नहीँ खाऊँगा और मैँ भूख से मर जाऊँगा..! इसलिये मैँ तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर जाऊँगा।

रामदास मरने के लिये निकल जाता है तब भगवान राम जी हनुमान जी को कहते हैँ हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार हैँ।

हनुमान जी जाते हैँ और रामदास कूदने ही वाला होता हैँ की हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते हैँ और बोलते हैँ क्याँ कर रहे हो?

रामदास कहता हैँ आप कौन ? हनुमान जी कहते है मैँ तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये ?

रामदास कहता है अब आये हो इतनी देर से वहा बोल रहा था की खाना खा लो तब आये नहीँ अब क्योँ आ गये ?

तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश हैँ अब हम सब साथ बैठकर खाना खायेँगे। फिर राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी , हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते हैँ।

इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता।

सेवा करते 15 दिन हो गये एक दिन रामदास ने सोचा घर मैँ ५ लोग हैं,सारा  काम में  ही अकेला करता हुँ ,बाकी लोग तो दिन भर घर में आराम करते है.मेरे माँ, बाप ,चाचा ,भाई तो कोई काम नहीँ करते सारे दिन खाते रहते हैँ. मैँ ऐसा नहीँ चलने दूँगा।

रामदास मंदिर जाता हैँ ओर कहता हैँ पिता जी कुछ बात करनी हैँ आपसे।राम जी कहते हैँ बोल बेटा क्या बात हैँ ?


रामदास कहता हैँ की घर में मैं सबसे छोटा हुँ ,और मैं ही सब काम करता हुँ।अब से मैँ अकेले काम नहीँ करुंगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा,आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा।

राम जी कहते हैँ तो फिर बताओ बेटा हमेँ क्या काम करना है?रामदास ने कहा माता जी (सीताजी) अब से रसोई आपके हवाले. और चाचा जी (लक्ष्मणजी) आप घर की साफ़ सफाई करियेगा. 

भैय्या जी (हनुमान जी)शरी एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम में आया और बोला कि बाबा आप सब का ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नही है तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम में रह सकता हूँ ?

बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम  क्या है ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ हैँ।

तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा।

उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर ज

praveen Dwivedi

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अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी. 
अर्थ= हे लक्ष्मण! सोने की लंका भी मुझे अच्छी नहीं लगती है। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर हैं॥
  🇮🇳 happy republic day 🇮🇳
            ~ वाल्मीकि रामायण #NojotoQuote
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