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rajeshwari Thakur

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विष्णुप्रिया

मुक्तहरा सवैया 121 × 8 Anukalp Tiwari रच दिया बस किसी तरह अनु 😀😀 बाकी तुम पास कर दो 🤣🤣 The king cobra (Ophiophagus hannah) is a large elapid endemic to forests from India through Southeast Asia. It is the world's longest venomous snake. Adult king cobras are 3.18 to 4 m (10.4 to 13.1 ft) long on average. The longest known individual measured 5.85 m (19.2 ft). It is the sole member of the genus Ophiophagus. It preys chiefly on other snakes and occasionally on some other vertebrates, such as liza #Photography #wildlife #yqdidi #YourQuoteAndMine #सर्प #विष्णुप्रिया #picstaholic

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सुशोभित हैं शशिशेखर कंठन,
आसित हैं अहि तल्प हरीश
हलाहल है रदना पर मंडित ,
साजत है मणि शीश फणीश
अरुक्ष सुकोमल गात मनोहर,
छावत हैं फण केशव शीश
सुहावन सावन पंचम को,
सब पूजत है यह नाग मणीश । मुक्तहरा सवैया 121 × 8
Anukalp Tiwari
रच दिया बस किसी तरह अनु 😀😀
बाकी तुम पास कर दो 🤣🤣

The king cobra (Ophiophagus hannah) is a large elapid endemic to forests from India through Southeast Asia. It is the world's longest venomous snake. Adult king cobras are 3.18 to 4 m (10.4 to 13.1 ft) long on average. The longest known individual measured 5.85 m (19.2 ft). It is the sole member of the genus Ophiophagus. It preys chiefly on other snakes and occasionally on some other vertebrates, such as liza

Atul Sharma

*"सुविचार"* *"Date-8/6/19"* *"Day-Saturday"*

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*"सुविचार"*
*"Date-8/6/19"*
*"Day-Saturday"*


"सर्प" यह "शब्द" सुनते ही "मन" में एक "आकार" प्रकट हो जाता है, एक "विष" से भरे "हुंकारते" 🐍हुए "भयानक" से "जीव" का... यदि यह "सर्प" किसी "घर" 🏠पर मिल जाए, तो "कोलाहल" मच जाता है "लोग"  "सुरक्षा" का प्रबंध करते हैं "भीड़" इकट्ठा हो जाती है, उस "सर्प" 🐍 के "प्राण" लेने के लिए, किंतु यदि वही "सर्प" किसी "मंदिर" में पाया जाए, तो क्या होता है...?
"लोग" उस "सर्प" के समक्ष अपना "शीश" 🙇🏻🙇🏻‍♀ झुकाते हैं, "प्रार्थना" करते हैं, "हाथ" 🙏🏻जोड़ते हैं "दूध" 🥛पिलाते हैं, "स्वयं" को "शिवजी" का "आशीर्वाद" मानते हैं अब इस "विषय" में आपका क्या "विचार" है ?
सोचिए "मनुष्य" भी वही था... और "सर्प" भी वहीं था... फिर "परिस्थिति" में इतना "अंतर" क्यों...? कोई उस "सर्प" के "प्राण" ले रहा है, तो कोई उस "सर्प" की "पूजा" कर रहा है अंतर का "कारण" है... *"संगत"* और *"स्थान"*... जब वह "सर्प" " शिव" जी की "संगति" में था, "मंदिर" के "पवित्र" "वातावरण" में था, तो वह हमारे लिए "देवतुल्य" हो गया... अन्यथा वह हमारे लिए "शत्रु" ही था... है ना...
क्योंकि जीवन में *"संगति"* और *"स्थान"* का "चयन" सोच समझकर कीजिएगा, क्योंकि यही "संसार" आपके "व्यक्तित्व" का "ज्ञान" आपकी "संगति" से करवाता है और यही बात "धनी" और "निर्धन" कि नहीं है यही बात है "संस्कारी" और "सदाचारी" के साथ की है "सदाचारी" का साथ सदैव "सम्मान" का कारण बनता है,
तो समझे आप इसलिए अपनी" संगति" अच्छी रखें तभी आप हर जगह "सम्मान" पाएंगे.... 

Bý-Åťüľ Şhãřmå 🖊️🖋️✨✨ *"सुविचार"*
*"Date-8/6/19"*
*"Day-Saturday"*

रजनीश "स्वच्छंद"

काल सर्प।। प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता। विकल मन पंछी हुआ, अंतर्मन भी है दुत्कारता। स्वार्थलोलुप मनु संतति, है आत्मा मूर्छित पड़ी। अहं स्वर है कर्ण भेदता, है वाणी लज्जित खड़ी। वनचर मनुज के भेष में, दम्भ पाले ललकारता, #Poetry #Quotes #Life #kavita #hindikavita #hindipoetry

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काल सर्प।।

प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।
विकल मन पंछी हुआ, अंतर्मन भी है दुत्कारता।

स्वार्थलोलुप मनु संतति, है आत्मा मूर्छित पड़ी।
अहं स्वर है कर्ण भेदता, है वाणी लज्जित खड़ी।
वनचर मनुज के भेष में, दम्भ पाले ललकारता,
आडंबरों के युग मे चित बैठ अंदर धिक्कारता।
किसी अश्वमेधी यज्ञ का बन अश्व सरपट भागता,
निर्बल सबल सब भेदहींन, बढ़ रहा सबको धांगता।
जीवात्मा नेपथ्य से, है कराहता और पुकारता।
प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।

किसके उदर का एक निवाला धूलधूसरित हो रहा,
अनाजों के ढेर चढ़, रोटियों का ही गणित हो रहा।
इस समर में था कौन जीता, कौन था तटस्थ बना,
पाप है या पुण्य है ये, एक दूजे में था समस्त सना।
धन की बोरी कोई लादे, कष्ट कोई झुक है ढो रहा,
पाप कालिख है अब नहीं, जा गंगा में सब धो रहा।
रहे कब तलक वो मूक बैठे, है उठ अब हुंकारता।
प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।

बस किनारे बैठ कर, जलधार की थी विवेचना,
मन भटकता मझधार में और सो रही थी चेतना।
गहराई को मापा नहीं, थाह नहीं कोई वेग की,
स्वप्नसज्जित लालसा, कमी रही एक डेग की।
ले लेखनी लिख रहा, मैं आज मनुज के हार को,
टाल मैं जाऊं कहीं, इसके भावी समूल संहार को।
मैं भविष्य हूँ देखता, कागज़ पे उसे हूँ उतारता।
प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।

©रजनीश "स्वछंद" काल सर्प।।

प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।
विकल मन पंछी हुआ, अंतर्मन भी है दुत्कारता।

स्वार्थलोलुप मनु संतति, है आत्मा मूर्छित पड़ी।
अहं स्वर है कर्ण भेदता, है वाणी लज्जित खड़ी।
वनचर मनुज के भेष में, दम्भ पाले ललकारता,

Safar

जहर का खेल #रूहमेसर्प

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हर लम्हें में डर है 
यहां इंसान इंसान का
बना बैठा दुश्मन है
रूह में सर्प ,
मुंह में लिए सर्प दंश है
अब यहां खेल हो गया
 और भी जहरीला 
रहना अब और संभलकर क्यों की
अब ये पूरा खेल ही जहर है जहर का खेल
#रूहमेसर्प


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