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Gumnam Shayar Mahboob
गिरते हुए दीवार के साए में खड़ी है और दुनिया कह रही है चालाक बड़ी है #गिरते #पेड़ #साए #दुनिया #चालाकी #गुमनाम_शायर_महबूब #gumnam_shayar_mahboob
Ek villain
दिल्ली में पानी की दशा बेहतर क्यों नहीं है इसका जवाब पिछली सरकारों के पास भी कभी नहीं था और आज भी नहीं है इससे बढ़ते राजनीतिक और दिवाली के बाद राजनीति के दम घुट हालात से भी सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े हुए दिल्ली के पास अभी हालात दूसरे दिन दो-तीन दिन दशकों बाद से बेहतर हुए हैं बात हवा की हो या पानी की पूरे साल इसमें से किसी ना किसी का रोना बना रहता था दिल्ली प्रदेश की राजधानी है यह देश का प्रतिनिधित्व नहीं करती बल्कि है आदर्श है जिससे सारा देश देखता है अनुकरण के अवसर तलाशने करेगा देश की दिशा में भी यह तय होती है कि पानी की बढ़ती किल्लत और भूजल की हालत पर सरकार कितनी संतान है इसका पता है बात से चलता है कि भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है इस मसले पर सरकार को घेर लेते हैं सरकारी पानी ना हो तो उतारू रहते हैं पर इसकी भरपाई दोस्तों से दूर है दिल्ली के पानी की आपूर्ति होती है नदियों में गंगा और यमुना जल की आवश्यकता है यहां की आबादी 100000 से 28 करोड़ तक पहुंच गई अब पानी की आवश्यकता कई गुना बढ़ गई है दूसरी तरफ से होने वाले पानी में बड़ी कमी आई है पानी की मांग कई गुना बढ़ गई है और दूसरी तरफ से ज्यादा है और उसमें से ही आता है हर दिन किए जाने वाले पानी की आपूर्ति की कोई व्यवस्था ना होने के कारण आज ही जल स्तर तक नीचे जा चुका है एक सर्वे के अनुसार दिल्ली के प्रति वर्ग मीटर की दर से गिर रहा है हालात यदि ऐसे नहीं गए तो कुछ समय बाद पताल में भी जाने पर पानी नहीं मिलेगा दूसरी बड़ी बात यह है कि जल्दी इतना नीचे है खींचा जाता है उसकी गुणवत्ता भी उतनी ही खत्म होती चली जाती ©Ek villain #गिरते भूजल स्तर पर लगे लगाम #WorldPoetryDay
Vivek Singh
आज कुछ बूंदों को जमी पर गिरते देखा है मैनें, लगता है तेरी यादों का मौसम आने वाला है। ©Vivek Singh #droplets #आज कुछ #बूंदों को #जमीं पर #गिरते #देखा है मैनें, लगता है #तेरी #यादों का #मौसम #आने वाला है।
Govind Pandram
कभी गिरते रहे तो कभी सँभलते रहे, हम फिर भी उसी राह पर चलते रहे, पानी के एक - एक कतरे की खातिर.. पंछी की तरह दूर - दूर तक उड़ते रहे! _गोविन्द_ कभी #गिरते रहे तो कभी #संभलते रहे.??
zubair khan
My lifeline suno senorita.. नाच देखा है कभी शाख से गिरते पत्तों का यूँ झुम के गिरते है तेरी याद में आँसू😢 #lifeline
Mahfuz nisar
उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, उसमें अलग हुए कंकड़ो के खालीपन दिखे, जहाँ से अक्सर गुज़रते हुए क़दम लड़खड़ा जाते हैं, ना जाने कितनी दफा मैं और हाँ आपभी गिरते- गिरते बचे हैं। सब कुछ ही तो नज़र है,पर नज़रंदाज़ करने की आदत हो गई है, कहते हैं, किसको कहें,कहाँ रोएँ-कहाँ गायें,किधर ख़ुद को ले जायें, लगता है जैसे कोई अंधेरी सीढी चढ़ रहे हों, जहाँ सामने कौन है,पता नहीं, अचानक से आकर कोई भी ठोकर मारता है, हर तकलीफ़ से झूझना पड़ता है, कहना पड़ता है, ईटस ओके, कैसे कब हो जाओगे विद्रोही, समझे हो क्या ये अब तक, हर दिन की अपनी परेशानी है, क्या है इसके पीछे वजह कहाँ किसी को जानने की तलब आई है। बचपन,भूख से बिलख रही, जवानी,बेरोज़गारी से झुलस रही, बुढ़ापा,बेसहारा मर रही है, लाश मिलती है,तो वारिस नहीं, कहाँ मुकदमा चलेगा,हूँ ,बताओ? किसको खोजोगे,किससे माँग करोगे? कौन ठीक करेगा? वो जिसे तुमने ठिका दिया है सब कुछ का, चलो कम से कम ख़ुद पर खूब हँस लो अब, तुम आज भी अंधे हो, युग चांद पर चमकना चाहता है, लेकिन तुम अभी भी धरती में अपनी लकीर खींचने में लगे हो। खैर,तुमको दिखे ही कहाँ हैं, अलग हुए कंकड़ो के खालीपन। वो तो मैंने देखा तो मेरा मसला था। ✍ mahfuz मी पोस्ट