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Dr Manju Juneja

शिव महापुराण से ली गई एक बहुत ही प्रचलित कथा है 
एक बार  भील जाती का परिवार था वो भील पशुओं का वध कर अपने परिवार का पेट पालता था ।र्क़ दिन घर पर खाने को कुछ नही बचा बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे भीलनी ने भील से कहा कि  बच्चों के लिए खाने का इंतजाम करो।भील सुबह उठकर जंगल मे आ गया उस दिन कुदरती शिवरात्रि थी। जंगल मे एक सरोवर था भील ने उस सरोवर में स्नान किया पीने के पानी का पात्र भी भर लिया थोड़ी देर इधर उधर देखा और फिर पास ही बेल के पेड़ पर छुप कर बैठ जैसे ही कोई जानवर आएगा वो उस पर निशाना साध देगा ।थोड़ी देर बाद उसे वहा हिरनी नजर आयी उसने तीर से निशाना लगाया निशाना लगाते हुए कुछ बेल पत्र शिवलिंग पर गिर गए और पानी भी छलक गया ।इससे भील की प्रथम पहर की पूजा हो गई ।जैसे ही हिरनी को मारने लगा हिरनी ने कहा कि मैं अपने पति  बहन और बच्चों को बता कर आती हूँ नही तो वो परेशान हो जायेगे।भील को उस पर विशवास नही हो रहा था तो भीलनी ने भगवान का वास्ता दिया कि मैं उन्हें बता कर लौट आऊंगी ।भील इंतजार करने लगा इतने में हिरनी की बहन उसे ढूंढती हुई वहा आ गई भील ने फिर से निशाना साधा फिर से बेल पत्र नीचे बने शिवलिग पर जा गिरे और जल की बूंदे भी गिर गई।भील की दूसरे पहर की पूजा हो गई । भील ने जैसे ही तीर उसे मारने के लिए निकाला तो हिरनी बोल उठी मैं अपनी बहन और बच्चों से आखिरी बार मिल लू तुम फिर चाहे मुझे मार देना उसने आग्रह किया वो भी चली गईं ।भील अब इंतजार करने लगा ।कुछ काल बाद वहाँ हिरन आ  गया  जैसे ही वो तीर   हिरन पर चलाने लगा उसके तीसरे पहर की पूजा हो गई ।
हिरण ने भी भील को कहा कि मैं अपने परिवार से आखिरी बार मिल आऊँ ,फिर तुम मेरा शिकार कर लेना ।भील के ऊपर से भी अब अज्ञान का पर्दा हटने लगा था ।हिरण अपने परिवार के पास पहुचा  तब  हिरण कहने लगा कि मैं भील के पास जा रहा हूँ ।हिरण के पीछे हिरणी उसकी बहन बच्चे सभी पीछे चलने लगे और भील के पास पहुच गए ।भील ने तरकश से तीर निकाला तभी पत्ते शिवलिंग पर जा गिरे भील की चौथे पहर ही भी पूजा हो गयी ।इधर हिरण कहने लगा कि मुझ पर बाण चलाओ सभी कहने लगे नही मुझ पर बान चलाओ ।इतने में शिवजी साक्षात रूप में प्रकट हो गए उन्होंने भील की पूजा से प्रसन्न होकर उसे काफी सारा खाने का सामान ओर धन दिया और भील से वचन लिया कि वो किसी जीव का शिकार नही करेगा ।भोले बाबा सच मे बहुत भोले है 
शरण मे आने वाले का करते हैं उद्धार
सबके भोले भरते हैं भंडार

©Dr Manju Juneja #शिवमहापुराण #शिव #भोले #भील #हिरण #तीर #शिवलिंग #nojotohindi #nojotostory 

#Light

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना

'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।

राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया


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