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Sangeeta Jha

#अतिरिक्त पाने की लालसा #विचार

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Sunita D Prasad

#अतिरिक्त.... मेघों ने.. अतिरिक्त जल बरसा दिया..! धरा ने भी, कुछ जल कर अवशोषित/संग्रहित.. #yqbaba #yqdidi #yqpowrimo

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  #अतिरिक्त....

मेघों ने.. 
अतिरिक्त जल
बरसा दिया..!
धरा ने भी,
कुछ जल 
कर अवशोषित/संग्रहित..
अतिरिक्त, 
बहा दिया..।

सागर सहर्ष 
समाहित करता रहा.... 
सबका अतिरिक्त..!
और होता गया 
दिन-ब-दिन खारा..!

तुम्हारे कंधों पर 
सिर टिकाते ही..
न जाने क्यों..
वही खारापन पाती  हूँ ।।
--सुनीता डी प्रसाद💐💐
      #अतिरिक्त....

मेघों ने.. 
अतिरिक्त जल
बरसा दिया..!
धरा ने भी,
कुछ जल 
कर अवशोषित/संग्रहित..

CalmKrishna

.....................

©CalmKrishna तत्वम असि !

#अतिरिक्त #अहंकार #extra #ego #philosophy #oneliner

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
2 – ग्रह-शान्ति

'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 1 - धर्मो धारयति प्रजाः आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है। पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
1 - धर्मो धारयति प्रजाः

आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है।

पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
14 – ममता

'मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

Vishal Kumar

मेरा दर्द 
तुम्हारे अतिरिक्त 
और कौन समझ सकता है।
तुम्हारे अतिरिक्त
मेरा दर्द। #poetry #stories #novels #play #quotes #music #shayari #art #actor #artist #philospher #nature #india

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 5 - भक्ति-मूल-विश्वास 'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है। 'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठन

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
5 - भक्ति-मूल-विश्वास

'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है।

'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठन

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 19 - हारे को हरिनाम नदी घड़ियालों से भरी थी, आकाश मच्छरों से, तटीय प्रदेश लम्बी घासों से, जिनमें विषैले सर्पों की गणना नहीं और वन में हाथी, शेर, तेंदुए, चीते। वृक्षों पर भी निरापद शरण लेना सम्भव नहीं था। वहाँ भी सर्प और तेंदुए स्वच्छन्द छलांग ले सकते थे। उसने सोचा भी नहीं था कि बर्मा के इस प्रदेश में उसे रात्रि व्यतीत करनी पड़ेगी। सूर्यास्त के पूर्व ही वे लौट जायेंगे, ऐसा उनका विचार था। लेकिन सूर्य पश्चिम में पहुँच चुके और अब भी पता नहीं

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
19 - हारे को हरिनाम

नदी घड़ियालों से भरी थी, आकाश मच्छरों से, तटीय प्रदेश लम्बी घासों से, जिनमें विषैले सर्पों की गणना नहीं और वन में हाथी, शेर, तेंदुए, चीते। वृक्षों पर भी निरापद शरण लेना सम्भव नहीं था। वहाँ भी सर्प और तेंदुए स्वच्छन्द छलांग ले सकते थे।

उसने सोचा भी नहीं था कि बर्मा के इस प्रदेश में उसे रात्रि व्यतीत करनी पड़ेगी। सूर्यास्त के पूर्व ही वे लौट जायेंगे, ऐसा उनका विचार था। लेकिन सूर्य पश्चिम में पहुँच चुके और अब भी पता नहीं

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 10 – अचौर्य श्रीपशुपतिनाथ का दर्शन तब इतना सुलभ नहीं था जितना आज हो गया है। तब पक्की सड़क नेपाल तक नहीं बनी थी। कुछ दूर रेलवे यात्रा, कुछ दूर मोटरों से और फिर पैदल। मुझे कल्पना भी नहीं थी कि रेलवे इंजिन में पत्थर के कोयले के स्थान पर लकड़ी का ईंधन उपयोग करने से क्या कठिनाई आती होगी। शिवरात्रि के अवसर पर कुछ दिनों के लिए तीर्थयात्रियों को भारत से काठमांडु जाने की बिना छानबीन अनुमति दी जाती है। वैसे ही अनुमति-पत्र उस समय भी दिये गये; और उन्

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
10 – अचौर्य

श्रीपशुपतिनाथ का दर्शन तब इतना सुलभ नहीं था जितना आज हो गया है। तब पक्की सड़क नेपाल तक नहीं बनी थी। कुछ दूर रेलवे यात्रा, कुछ दूर मोटरों से और फिर पैदल।

मुझे कल्पना भी नहीं थी कि रेलवे इंजिन में पत्थर के कोयले के स्थान पर लकड़ी का ईंधन उपयोग करने से क्या कठिनाई आती होगी। शिवरात्रि के अवसर पर कुछ दिनों के लिए तीर्थयात्रियों को भारत से काठमांडु जाने की बिना छानबीन अनुमति दी जाती है। वैसे ही अनुमति-पत्र उस समय भी दिये गये; और उन्
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