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Dil Se Dil Tak

#Home #झोंपड़ी #self_respect Mukesh Poonia Golden Navbharat ¶__Anshika yadav__¶( @ तनु @ ) Monu Kumari PФФJД ЦDΞSHI #Life

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AJEEM KHAN

सहमी हुई है झोंपड़ी बारिश के खौफ से,
महलों की आरजू ये है कि बारिश तेज हो।

©AJEEM KHAN #Barish🌧 #बारिश #महलों #झोंपड़ी 

#MereKhayaal

Najmuzzaman

نکلا جو روشنی کی تلاش میں آج
جلتی جھوپڑی دیکھ,ارادے بدل گئے.. 


निकला जो रौशनी की तलाश़ में आज
जलती झोपड़ी देख, इरादे बदल गए ।। #alone #दीपक #झोंपड़ी #रौशनी

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 16 - राजस त्याग दु:खमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्यजेत्। स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्।। (गीता 18।8)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
16 - राजस त्याग

दु:खमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्यजेत्।
स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्।।
(गीता 18।8)

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 14 - सात्विकी श्रद्धा 'मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ।' जिन्हें लोग 'सरकार' 'अन्नदाता' कहते थकते नहीं थे, वे नरेश स्वयं आये थे एक कंगाल ब्राह्मण की झोंपड़ी पर। उन्हें भी - जिनकी आज्ञा ही उनके राज्य में कानून थी और जिनकी इच्छा किसी को भी उजाड़-बसा सकती थी, उन्हें उस मुट्ठीभर हड्डी के दुर्बल ब्राह्मण से अपनी बात कहने में भय लगता था। 'क्या कहना है तुम्हें?' न सरकार, न अन्नदाता - वह ब्राह्मण इस प्रकार बोल रहा था जैसे नरेश वह है और जो नरेश उस

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
14 - सात्विकी श्रद्धा

'मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ।' जिन्हें लोग 'सरकार'  'अन्नदाता' कहते थकते नहीं थे, वे नरेश स्वयं आये थे एक कंगाल ब्राह्मण की झोंपड़ी पर। उन्हें भी - जिनकी आज्ञा ही उनके राज्य में कानून थी और जिनकी इच्छा किसी को भी उजाड़-बसा सकती थी, उन्हें उस मुट्ठीभर हड्डी के दुर्बल ब्राह्मण से अपनी बात कहने में भय लगता था। 

'क्या कहना है तुम्हें?' न सरकार, न अन्नदाता - वह ब्राह्मण इस प्रकार बोल रहा था जैसे नरेश वह है और जो नरेश उस

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 5 – अक्रोध 'क्रोधं कामविवर्जनात्' हम सब उन्हें दादा कहते थे। सचमुच वे हमारे दादा - बड़े भाई थे। सगे बड़े भाई भी किसी के इतने स्नेहशील केदाचित् ही होते हों। उनका ध्यान हम सबों की छोटी-से-छोटी आवश्यकता पर रहता था। किसे कब क्या चाहिये। किसे क्या-क्या साथ ले जाना चाहिये।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
5 – अक्रोध

'क्रोधं कामविवर्जनात्'

हम सब उन्हें दादा कहते थे। सचमुच वे हमारे दादा - बड़े भाई थे। सगे बड़े भाई भी किसी के इतने स्नेहशील केदाचित् ही होते हों। उनका ध्यान हम सबों की छोटी-से-छोटी आवश्यकता पर रहता था। किसे कब क्या चाहिये। किसे क्या-क्या साथ ले जाना चाहिये।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 7 - सब में भगवान 'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!' दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
7 - सब में भगवान

'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!'
दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - सब में भगवान 'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!' दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम जन शुन्य था। भवनों के द्वार खुले पड़े थे। #Books

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|| श्री हरि: ||
7 - सब में भगवान

'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!'
दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम जन शुन्य था। भवनों के द्वार खुले पड़े थे।


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