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Anjali Jain

#पितामह भीष्म #

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आज अर्जुन के बाणों द्वारा पितामह भीष्म का वध, फ़िर भी भीष्म द्वारा निहाल होकर आशीर्वाद दिया जाना - "आयुष्मान भव अर्जुन ",
आचार्य द्रोण को बधाई देना - आपके शिष्य ने मेरी छाती छलनी कर दी, आचार्य द्रोण, बधाई हो!
अविस्मरणीय दृश्य, मर्मांतक पीड़ा, आज का दृश्य उतना ही पीड़ा दायी था जितना द्रोपदी का चीर हरण!
भीष्म की आत्म शांति भी दर्शनीय थी क्योंकि दुर्योधन के पक्ष में युद्ध करने की विवशता से वे भी मुक्ति चाहते थे शायद! शिखण्डी के चेहरे से छलकती तृप्ति, अन्य सभी परिजन के चेहरों से टपकती पीड़ा, आज कई भावों को सब ने एकसाथ भोगा!
महाभारत की युद्धभूमि का सबसे महान, विशाल शक्तिशाली और पुरातन वट वृक्ष आज धराशायी हो गया! विविध भाव - सरिताएँ, दुख के असीम पारावार में जा मिली!! मुकेश खन्ना द्वारा भीष्म पितामह के चरित्र को इस जीवंतता से निभाना कि इससे अलग भीष्म का रूप और क्या होगा?
शानदार! शानदार! #पितामह भीष्म #

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
4 – कर्म

'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।'

बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
4 – कर्म

'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।'

बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण


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