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Poonam Ritu Sen
ना उपजे सोच कुंठित कुविचारों की प्रेरणा है नदियां अविरल बहने की पत्थरों से टकराते हैं ये हर मोड़ पर, विचार नहीं बदलते मंजिल पाने की.. #yqbaba #yqdidi #सोच #कुंठित #कुविचार #प्रेरणा #नदियां #अविरल #पत्थर #मोड़ #विचार #मंजिल
@thewriterVDS
लोगों की इस भीड़ में मैं भी हूं, कुछ जज़्बात के साथ कुंठित मैं भी हूं, सोच रहा हूं कुछ और, वर्णित कुछ और करता हूं लोगों की भीड़ में घुट घुट के मैं मरता हूं सोचने वाले सोचते रह जाते हैं मेरे जज्बातों के बारे में, मै कुंठित क्यों हूं सोचता क्या हूं और वर्णित क्या करता हूं। मै प्यार से कुंठित हूं प्यार ही सोचता हूं और प्यार ही वर्णित करता हूं। लोगों की इस #भीड़ में मैं भी हूं, कुछ #जज़्बात के साथ #कुंठित मैं भी हूं, सोच रहा हूं कुछ और, #वर्णित कुछ और करता हूं लोगों की भीड़ में घुट घुट के मैं #मरता हूं सोचने वाले सोचते रह जाते हैं मेरे जज्बातों के बारे में, मै कुंठित क्यों हूं
Shivam Verma
#OpenPoetry {••••••मन••••••} इस तन पर और मन पर व्यापित हैं जग की पीड़ा तन हर्षित मन कुलपति फिर मन भए व्यकुलाए मन कुंठित तन कर्म करे तन कुंठित मन रोए असुअं में जब धीर हरे तब सिसक सिसक बिखराए तेरी पीड़ा " सौं " तू जाने फिर भी रहे छिपाए जग जानै मन मोरे खेल करै सब कोई तू बस ठहरा कोरा कागज तुझ संग मीत करै ना कोई "जो जन जस मन तस तुझ संग करे अनुरागी" प्रीति वचन सब मोह आगंतुक बैरागी तुझ झोंके विरह की अग्नी खुद रात करै रंगीनी मन तू कोमल, निश्छल, निर्मल तोहे छलै सब कोई। (मेरी डायरी से) #OpenPoetry {••••••मन••••••}
रजनीश "स्वच्छंद"
हाय जवानी।। हूँ यौवन के दहलीज़ खड़ा, अपने ही कर्मों से खीझ पड़ा। रवानी रहीं वो खूं की नहीं, कहानी रही वो जुनूँ की नहीं। बुद्धि भी रही अब तीक्ष्ण नहीं, आवेशित है पर है उद्विग्न नहीं। मेहबूब भी है महबूबा भी रही, अवसादपूरीत लघुता ही रही। सर्पदंश सी वाणी थी मुखरित, थी भावविहीन स्वालम्ब रहित। जननी की छाती भी कोस रही, क्यूँ सर्प आस्तीन में पोस रही। दिशा नहीं बस उहापोह है, छली व स्वार्थी प्रेम मोह है। दिकभ्रमित खड़ा तलवार लिए, युद्धक, पर बिन सरोकार लिए। आंदोलित तो है पर दिशाहीन, भाव भी कुंठित और प्रिशाहीन। उद्गार तो है पर उद्वेलन तो नहीं, मिलन तो है पर सम्मेलन तो नहीं। बोलो ये देश भी किसकी पुकार करे, सोये पूतों के बल क्या हुंकार भरे। गर्जन क्या जो कानों तक भी ना पहुंचे, निजमन में हो पर कोई कभी भी ना बूझे। देखो हैं टूट रहे अब अश्रुबाँध, जाएं न कहीं मर्यादा ये लांघ। कब माता देती है शाप किसे, सुनाए भी तो अपना संताप किसे। निरन्तर समयचक्र बलवान बड़ा है, तू जो यौवन को लिए मसान खड़ा है। कुछ जुगत लगा और विचार कर, कुंठित तंद्रा की मंद तू धार कर। कुछ कर ऐसा की माता भी गर्व करे। पुनर्जीवित तुझको करने को गर्भ धरे। ©रजनीश "स्वछंद" हाय जवानी।। हूँ यौवन के दहलीज़ खड़ा, अपने ही कर्मों से खीझ पड़ा। रवानी रहीं वो खूं की नहीं, कहानी रही वो जुनूँ की नहीं।
आयुष पंचोली
Quotes on world कुंठित मन हो, कुंठित वाणी, कुंठा से ग्रसित ही बनते अभिमानी। देखा हमने खेल निराला, दिखावा करने वालो का ही होता बोलबाला। है नकाब चेहरो पर कितने, है चरित्र के खोटे सिक्के। मन मे मैल भरा है जिनके, रिश्तो को व्यापार बनाते, ऐसे महाशय जीवन की परिभाषा सिखाते। आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi #NojotoQuote #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan
रजनीश "स्वच्छंद"
शापित।। शापित है ये लहू हमारा, शापग्रस्त मनोविचार है। कुंठित पड़ी है आत्मा, कलुषित जीवनधार है।। किस मुख लेखन का करूँ अभिनंदन, किस मुख निजमन की बात करूँ। हर मुख ताले जड़े चुप्पी के, किस किस दुख पे आघात करूँ। है अनुकम्पित हर प्राणी यहां, कुच्छ निज के कुच्छ औरों के बोझ तले। विषव्यापीत है विनय सवज्ञा,बाजार है, कारोबार यही हर रोज़ चले। अपनो की परिभाषा बदली,मन भी मन का निरादर करता है। किस ओर चलूं, अपने को ढूंढूं कहाँ,छुप जाने ये को लंबी चादर करता है। कहने को मनु की ये संतति, मनुज कर्मों से ही खीझ पड़ा है। काटो तो लहू का खतरा नही,आंखें खोले जैसे निर्जीव खड़ा है। समय सारथी ले चला इसे,घुटनों बल चलने का आडम्बर कैसा। स्वप्न संकुचित, मलीन सोच, फिर तेरी धरा ये कैसी, ये अम्बर कैसा। भीष्म तूणीर शय्या पे लेटा,मानव धृतराष्ट्र बना है घूमता। धर्मराज भार्या दांव में हारे,दम्भ दुर्योधन सा झूमता। है पौराणिक महाभारत नही,बस युग ने कथा को बदला है। अब लिए कर चीर कृष्ण नही, द्रौपदी तो अब भी अबला है। जिसकी लाठी भैंस उसी की, बली अत्याचार है। कुंठित पड़ी है आत्मा, कलुषित जीवनधार है।। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote शापित।।
Manish Rohit Garai
नवरात्रि !! अनुशीर्षक मे पढें👇 हे मानव मै हतप्रभ हूँ तुम्हारी दुर्लभ माया से क्या क्या विचार उत्पन्न होंगे तुम्हारे कुंठित काया से ।। जिस नारी पर दृष्टि तुम्हारी गिद्ध स्वरूप रहती है जाने कैसे हृदय तुम्हारा
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