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Ambika Mallik

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'मनु' poetry -ek-khayaal

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Gautam_Anand

साँसों से खेल रही है मृत्यु, जीवन का अवसान हो रहा।
क्षीण हो चुकी उम्मीदें सारी, मन जैसे पाषाण हो रहा।।
नियती की कैसी निष्ठुरता, विचलित मन की क्रूर प्रतीक्षा।
तोड़ के सारे मोह का बंधन, जीवन यह निष्प्राण हो रहा।।


18 May 2021
संध्या 6:55 #अवसान #पिता_के_जाने_से_कुछ_क्षण_पूर्व #yqbaba #yqdidi

Bhaskar Anand

"मुझे पता था ऐसा होने वाला है। जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबकुछ शान्त सा दिख रहा था। अभिनय के अंतिम चरण में समय का चक्र गतिमान लग रहा था, और माया प्रभावी। मैं नहीं चाहता था कि मेरे अकस्मात से कोई प्रभावित हो लेकिन ये हो न सका। सभी माया में संबंध के मायावी प्रलोभन में आसक्त थे। मुझे भी सब याद आ रहा है, कभी भी मैं कूच कर सकता हूँ, लेकिन ये पलायन नहीं था, ये स्वाभाविक और स्वीकार्य था। जीवन के गंतव्य के प्रभंजन से कौन बच सका था अबतक, स्वयम्भू भी उसके गत्य से खुद को अलग नहीं कर सके जब।" मैं खो सा गया थ

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गाँव मे शहर "मुझे पता था ऐसा होने वाला है। जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबकुछ शान्त सा दिख रहा था। अभिनय के अंतिम चरण में समय का चक्र गतिमान लग रहा था, और माया प्रभावी। मैं नहीं चाहता था कि मेरे अकस्मात से कोई प्रभावित हो लेकिन ये हो न सका। सभी माया में संबंध के मायावी प्रलोभन में आसक्त थे। 

मुझे भी सब याद आ रहा है, कभी भी मैं कूच कर सकता हूँ, लेकिन ये पलायन नहीं था, ये स्वाभाविक और स्वीकार्य था। जीवन के गंतव्य के प्रभंजन से कौन बच सका था अबतक, स्वयम्भू भी उसके गत्य से खुद को अलग नहीं कर सके जब।"

मैं खो सा गया थ

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं पतझड़ गाऊंगा।। आज मैँ पतझड़ गाऊंगा, उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा। जो आस की जननी रही सदा, मैं अमर उसे कर जाऊंगा।, धरती बंजर ये बोल रही, #Poetry #kavita

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मैं पतझड़ गाऊंगा।।

आज मैँ पतझड़ गाऊंगा,
उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा।
जो आस की जननी रही सदा,
मैं अमर उसे कर जाऊंगा।,

धरती बंजर ये बोल रही,
चिड़िया भी मुख है खोल रही।
वीरान पड़े हैं बाग ये देखो,
डाली बिन पत्ते डोल रही।
मन मे आस लिए डोले,
अन्तर्मन भी खुल खुल बोले।
नवजीवन का संचार लिए,
बीज उड़े हौले हौले।
बगिया भी मन्द मुस्काती है,
श्रृंगारोत्सव की बेला है।
संग झूमेंगे उसके सहोदर भी, 
पता झूम रहा जो अकेला है।
दुख की बदली जब जब छाये,
आशाएं तभी पनपतीं हैं।
घना अंधेरा जो दिख जाए,
दीप-लौ तभी दमकतीं हैं।
जन्मोत्सव है आज आस की,
आज मैं जी भर गाऊंगा।
आज मैँ पतझड़ गाऊंगा,
उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा।
जो आस की जननी रही सदा,
मैं अमर उसे कर जाऊंगा।,

पतझड़ कहती, अवसान मेरा,
एक सुखद लाभ पहुंचाएगा।
जब भी होगी मेरी विदाई,
बादल भी घिर घिर छायेगा।
शुष्क धरा जल की बूदें,
भीनी महक जगाएगी।
निर्जीव पड़ी ये पत्ती भी,
यौवन पा कर शर्माएगी।
परम् सत्य है, गांठ बांध लो,
हर सुबह रात के बाद हुई।
मेरा चर्चा तो आम रहा,
जब नवजीवन की बात हुई।
एक सत्य पतझड़ बोली,
अवसान सुखद भी होता है।
सुबह तेरी होगी एक दिन,
क्यूँ पकड़ माथ तू रोता है।
इस परमसत्य की आभा में,
चमक चमक मैं गाऊंगा।
आज मैँ पतझड़ गाऊंगा,
उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा।
जो आस की जननी रही सदा,
मैं अमर उसे कर जाऊंगा।,

©रजनीश "स्वछंद" मैं पतझड़ गाऊंगा।।

आज मैँ पतझड़ गाऊंगा,
उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा।
जो आस की जननी रही सदा,
मैं अमर उसे कर जाऊंगा।,

धरती बंजर ये बोल रही,

रजनीश "स्वच्छंद"

जीवन सार।। लघु-शेष तन्द्रित जीवधारा, अवसान वृहद न किंचित होगा। मूल विहीन, संचय विहीन, शुष्क बाग न तब सिंचित होगा। प्रयत्नशील, शीला-काय प्रण, #Poetry #Life #kavita

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जीवन सार।।

लघु-शेष तन्द्रित जीवधारा,
अवसान वृहद न किंचित होगा।
मूल विहीन, संचय विहीन,
शुष्क बाग न तब सिंचित होगा।

प्रयत्नशील, शीला-काय प्रण,
मूर्छित भी नहीं, विस्मित भी नहीं।
दिक-भ्रम रहित अविरल वेगी,
लज्जित भी नहीं, कम्पित भी नहीं।

सृजन की धारा.....

नवसृजित एक पल्लव,
अन्तरगर्भ ले रहा आकार है।
दलन करने दमन को,
मूक हो, ले उठा जयकार है।

शुष्क सी बंजर धरा भी,
हो मुदित है खिल गई।
स्वप्नसज्जित नयन द्वार को,
एक दस्तक मिल गई।

अश्रुपूरित हैं नेत्र, किंतु,
मंगल गान हृदय में फूटता।
यज्ञ आहूत हो रहा,
मलय गन्ध वायु झूमता।

है दीवाली मन रही,
आरम्भ से अवसान हारा।
आस की ज्योति प्रज्वलित,
हुआ जग गुंजायमान सारा।

कपट कुत्सित विचार की,
होलिका है जल रही।
आनंद रस का स्वाद ले,
लेखनी है चल रही।

सूर्य उदित होने को आतुर,
छंट रहा तम बाह्य-अंदर।
मन का सूरज आ किनारे,
डाल बैठा लौह-लंगर।

बनती दिशाएं स्वयं सूचक,
किरणें हुईं सहगामिनी।
है थिरकती लेखनी,
ज्यों मद में चली गजगामिनी।

©रजनीश "स्वछंद" जीवन सार।।

लघु-शेष तन्द्रित जीवधारा,
अवसान वृहद न किंचित होगा।
मूल विहीन, संचय विहीन,
शुष्क बाग न तब सिंचित होगा।

प्रयत्नशील, शीला-काय प्रण,

Bhaskar Anand

"अवसान" अभिव्यक्ति अब विलग है, रिक्त है अवस्थाएँ अमर है नियोजन नीरा है कलुषित मन है गमगीन नेपथ्य है और वियोग प्रखर है #Poetry

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"अवसान"
अभिव्यक्ति अब विलग है, रिक्त है
अवस्थाएँ अमर है
नियोजन नीरा है
कलुषित मन है
गमगीन नेपथ्य है
और वियोग प्रखर है


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