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Durvesh Singh
मैं उड़ जाऊं उन्मुक्त गगन में ,मांझी वन पथ खुद मैं बनाऊं। चीर के पर्वत का वो सीना ,हर एक लक्ष्य को भेद के आऊ।। हूं मैं भारत मां की बेटी , हर बेटी का मान बढ़ाऊ । मैं उड़ जाऊं उन्मुक्त गगन में ,मांझी वन पथ खुद में बनाऊं ।। रोक सके ना अब कोई तूफा़ं, चट्टानों से मैं टकराऊ । फहरा के दुनिया में तिरंगा ,भारत को विश्व गुरु बनाऊ।। उड़नपरी यू उड़ गई है अब ,हाथ किसी के ना आएगी । बिगुल बजा दिया है दुनिया में ,विश्व में तिरंगा लहराए गी।। पूरा देश है साथ तुम्हारे ,दौडो़ बहना देश पुकारे । देखा मैंने 19 दिन में ,6 स्वर्ण पदकों को जीत लिया रे ।। नमन है ऐसी मां को जिसने ,इस ज्वाला को जन्म दिया रे । जीत के बिटिया घर को आई ,भारत में लग रहे जय कारे ।। सुना था मैंने देश यह मेरा ,सोने की चिड़िया कहलाया । देख लिया मैंने अब यह सब ,हिमा दास है नाम बताया ।। विजय पताका लहरा के ,बहना ने जन -गण मंगल गाया । आंखें हो गई थी नम जिसकी ,मेहनत का फल अब रंग लाया ।। मैंने सुना था देश की धरती ,सोना उगले हीरे मोती । हुआ सार्थक शब्द वो उनका ,जिनके घर में हीमा बेटी ।। नमन है मेरा ऐसे पिता को ,देश को दे दी उड़नपरी है । भेद के अपना हर एक वह ,अग्नि परीक्षा में उतरी है ।। मेरे देश के वीर जवानों ,मेरी सुन लो मेरी मानो। अडिग अदम्य है साहस सब में ,उठो और अपने को पहचानो ।। (2 पंक्तियां और ) अभी तो मैंने पंखों को धूप में शेंख कि देखा है , असली परो का इम्तिहान बाकी है । अभी तो उड़ी हूं आंगन समझ कर अपना , अभी पूरा आसमान बाकी है ।। ©® दुर्वेश सिंह एक रचना बहन हिमा दास के नाम
एक रचना बहन हिमा दास के नाम #कविता
read moreSaurabh Singhal
बातें मुझमें भी छुपी हैं उन्हें राज़ कैसे बनाऊं मोहब्बत तो मैंने भी की है तुझे मुमताज़ कैसे बनाऊं महल तो मैं भी तेरी यादों में बनाना चाहता था कारीगरों के हाथ ही कटवा दिए दूसरा ताज़ कैसे बनाऊं
संजय श्रीवास्तव
पुराना मकान ============================= छोड़ आया हूँ जो गांव ,भूलाऊंं कैसे नाम उसका हथेली पर ,मिटाऊं कैसे आईना ढूंढता चेहरा ,मेरा पहले जैसा एक चेहरे मे कई चेहरे ,दिखाऊं कैसे तमाम रिश्ते समेटे है ,वो पुराना सा मकां तोड़ कर उसको मै नया घर, बनाऊं कैसे बड़ी उम्मीद से शहर में, माँ ने जो भेजा है उसके सपनों को मुकम्मल, मै बनाऊं कैसे मुश्किलों से भरे ये दिन तो, गुजर जायेंगे याद आती है वो संजय ,तो भुलाऊं कैसे संजय श्रीवास्तव पुराना मकान
पुराना मकान
read moreneil patel
दिल की धड़कन है , ख्यालों में मेरे रहता है कौन है वो , जो सवालों में मेरे रहता है जिस का देखा न चेहरा उस से वफ़ा करता हूँ दिल के आईने में , मैं उस से मिला करता हूँ मैं नहीं जानता यह किस की तलब है मुझ को किस का अरमान इरादों में मेरे रहता है ख्वाब है वो मेरा , हक़ीक़त बनाऊं कैसे अपनी हसरत को मैं , तक़दीर बनाऊं कैसे मुझ को मिलता है सकूँ , उस का तसबुर कर के वो इशारा जो इशारों में मेरे रहता है किस की तारीफ में लिखी यह ग़ज़ल क्या जानू किस को कहता हूँ मोहब्बत का जनून क्या जानू मैं तो बस एक ही उम्मीद में रहता हूँ सदा उस को देखूँ जो नज़रों में मेरी रहता है
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