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अदनासा-

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Vishal

जिसे चाहो उसे ख़बर बनाओ,
जिसे चाहो उसे नोटों से दबाओ,
तुम तो सरकार हो,
जिस अख़बार को चाहो दरबारी बनाओ। #ख़बर #नोट #सरकार #अख़बार #दरबारी 
#yqbaba

Adv Rudra varshney

#HappyEid देख दयनीय दशा #आँख भर आई है नित बुरी खबर सुन कहर बरपाई है... भर पेट #रोटी नही #Love #thought #Dil #दरबारी #varshneyrudra #rudrap

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देख दयनीय दशा
आँख भर आई है
नित बुरी खबर सुन
कहर बरपाई है...

भर पेट रोटी नही
मन को नही सुहाई है
कुछ तो करो दरबारी अब
जनता दे रही दुहाई है...

#varshneyrudra ________🖋
rudrap #HappyEid 

देख दयनीय दशा
#आँख  भर आई है
नित बुरी खबर सुन
कहर बरपाई है...

भर पेट #रोटी नही

DINESH SHARMA

#अख़बार
चिंगारी को देख आंधी को इशारा करते है
नफा बताते है हमारा मगर ख़सारा करते है
अख़बार सब के सब अब दरबारी हो गए
इधर के दिखते रहेंगे मगर उधर के रहते है
©दिनेश शर्मा
05.09.2019, 20:00 PM #अख़बार #चिंगारी #दरबारी #ख़सारा #नफा

रजनीश "स्वच्छंद"

कलम भी बिकती है।। इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है, बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है। इतिहास के पन्ने पलट के देखो, सरेआम गवाही देते हैं। कर इतिहास वस्त्र विहीन, #Poetry #kavita #hindikavita #hindipoetry

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कलम भी बिकती है।।

इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है,
बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है।

इतिहास के पन्ने पलट के देखो,
सरेआम गवाही देते हैं।
कर इतिहास वस्त्र विहीन,
सत्त्ता से वाह वाही लेते हैं।
कौन रहा निर्भीक यहां,
किसने सच का दामन थामा था।
एक पृष्ठ की उसकी कहानी,
बना याचक वो सुदामा था।
थे मुट्ठी भर दिनकर यहां,
सत्ता को ललकारा था।
संख्या थी अनगिन उनकी,
सच से किया किनारा था।
सरस्वती धूल फांक रही,
लक्ष्मी का राज्याभिषेक हुआ।
ज्ञान बना दरबारी बैठा,
चापलूस सृजक प्रत्येक हुआ।
हठी रहे कुछ लोग यहां,
जो अलख जगाने निकले थे।
सुन उनकी आवाज़ आर्द्र,
कब सत्ता के मन पिघले थे।
जब तक हवा में वेग न हो,
कब दवानल धधकता है।
जब हुंकार हुआ शब्दों में,
ये बन तलवार चमकता है।
क्यूँ आज रहे मूक बधिर,
आओ मिल हम हुंकार करें।
सुप्त रही जो शिथिल आत्मा,
आ मिल उनका पुकार करें।
कानों में गिरे ये वज्र बन,
आ मिल शब्दों का भार बढ़ाते हैं।
दीये की लौ है टिम टिम करती,
एक मशाल हम यार जलाते हैं।
बुझ जाए वो चूल्हा, सत्ता की रोटी जहां सिंकतीं है।
इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है,

©रजनीश "स्वछंद" कलम भी बिकती है।।

इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है,
बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है।

इतिहास के पन्ने पलट के देखो,
सरेआम गवाही देते हैं।
कर इतिहास वस्त्र विहीन,


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