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Shayar E Badnaam
ना जुल्मी दरिंदों से, ना शराफत के बंदों से, ये वक्त गर संभलेगा तो सिर्फ आजाद परिंदो से..... #वक्त #संभलेगा #दरिंदों #शराफत #आजाद_परिंदे #शायर_ए_बदनाम
Pawanpreet Kaur
कैसे मनाए हम पर्व आजादी का, आजाद तो हम आज भी नहीं हैं, बंधे हुए हैं आज भी इन गुलामी की जंजीरों से, आज भी लड़कियाँ गुलाम हैं उन हवसी दरिंदों की, आज भी लड़कियाँ डरती हैं घर से बाहर निकलने से पहले, आज भी माँ बाप सोचते हैं लड़की को बाहर पढ़ने भेजने के लिए कि कहीं हमारी इज्ज़त को दाग़ ना लग जाए, गुलाम तो आज भी हैं हम उन हवसी दरिंदों के, तो कैसे मनाए हम पर्व आजादी का। ©pawan_preet_kaur_ #shayri #selfwriten #independence #insecuregirls #rape #nofreedom #nosafety
Anuj Tiwari
पानी के बुलबुले सी एक लड़की थी ॰॰॰॰ होठों पर मुस्कान लिये घर से निकली थी ॰॰॰॰ कि पड़ नजर शैतानों की॰॰॰॰ और डूब गयी नाव इंसानियत की॰॰॰॰ ओढ ली थी काली चादर आसमान ने॰॰॰॰ निर्वस्त्र कर दिया था भारत माँ को आज इस संसार ने॰॰॰॰ चीखें गूँजती रही मासूम सी जान की॰॰॰॰ बन गयी शिकार वो शैतानों के हवस की॰॰॰॰ कहर की अविरल धारा बहती रही॰॰॰॰ और वो ओस की बूंन्दो सी पिघलती रही ॰॰॰॰ जिस्म गलता रहा और तड़पती रही वो॰॰॰॰ आखिर बन ही गयी लाश वो॰॰॰॰ उसकी मृत आँखें जैसे सारा किस्सा बयां करती थी॰॰॰॰ उसके मृत होंठ सिसकते यह कहते थे कि॰॰॰॰ “ यह संसार नहीं दरिंदों का मेला है, नहीं रहना अब मुझे इस दुनिया में , यहाँ सिर्फ अपमान मेरा है ।” “आज रेप मेरा नहीं इस देश का हुआ है, क्योंकि इस देश का कानून , अंधा है।” उसकी मृत काया मानो चीख—चीख कर एक ही गुहार लगाती हो॰॰॰॰ “ कि तभी आग लगाना इस शरीर को॰॰॰॰ जब सुला दो इन लड़कियों में उन दरिंदों को और दिला न पाये इंसाफ मुझे, तो सड़ जाने देना इस शरीर को ॰॰॰॰ क्योंकि जल तो गयी थी मैं , उसी दिन को॰॰॰॰ अब क्या जलाओगे तुम इस राख को — इस राख को ”। Respect The Girls plz
Poet Shivam Singh Sisodiya
#shameonbollywood #justicefortwinkle #Hatebollywood एकतरफा सहिष्णुता और मासूम के साथ अन्याय (वास्तव में असहिष्णु कौन?)
KUNDAN KUNJ
अत्याचार कैंडल मार्च स्लोगन से अब काम नहीं चलने वाला, इन दरिंदों को जब तक फांसी नहीं मिलने वाला।। Read in caption - लगातार हो रही बेटियों पर अत्याचार के खिलाफ मेरे कुछ विचार _ आग जो था सीने में दफन आज वो उफन कर रहा है, मौत भी मौत को देखकर मानों आज डर रहा है।।
करण साव
समर्पण को छोड़ ये जबर्दस्तीयां अच्छी नहीं लगती , देश का कोना - कोना भर रहा दरिंदों की दरिंदगी से, ये हुक़ूमत सुन तेरी नाकामियां अब अच्छी नहीं लगातीं, दरिंदों से भड़ता जाता ये जहां अच्छी नहीं लगती , कफ़न मेँ लिपटी माँ की शहजादीयाँ अच्छी नहीं लगातीं !! माँ की लाडली क्या अब शहनाई तक भी सुरक्षित नहीं होगी , क्या बच्चों से नामर्दो की मर्दानगी बंद नहीं होगी, कभी उन्नाव कभी कठुआ अब अलीगढ़ अच्छी नही लगती , ये हुकूमत सुन तेरी नाकामियां अब अच्छी नहीं लगती , अब तो यही लगता है बेटियां न ले जन्म, अब दरिंदों के दरिंदगी अच्छी नहीं लगती , सौभाग्य से अगर ले बेटियां जन्म तो यु दरिंदों कि दरिंदगी अच्छी नहीं लगती !! ||बलात्कारी को फाँसी हो अलीगढ़ हो या काशी हो|| ✍करण साव #समर्पण अच्छी #जबर्दस्तीयां अच्छी नहीं लगती..
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