ग़ज़ल :- रश्म़ हमको मुहब्बत की निभानी है । बन गयी अब मेरी वो ज़िन्दगानी है ।।१ उठ गई आज जो दीवार चाहत में । देख दीवार हमको वो गिरानी है ।।२ कम नहीं है जहाँ में प्यार की दौलत । पर हमें आज तो वह भी लुटानी है ।।३ ज़िन्दगी खेलती है खेल ही हर पल । पर इसी खेल की दुनिया दिवानी है ।।४ कल तलक जो छुपा था चाँद बादल में । आज अपने महल की राजरानी है ।।५ बढ़ रही आज जो हर शहर ये हिंसा । क्या यहाँ भी छुपी कोई कहानी है ।।६ आ गये कुछ नये नेता सियासत में। उन सभी को सबक अब तो सिखानी है ।।७ ०२/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- रश्म़ हमको मुहब्बत की निभानी है । बन गयी अब मेरी वो ज़िन्दगानी है ।।१ उठ गई आज जो दीवार चाहत में । देख दीवार हमको वो गिरानी है ।।२