कुछ यूं बदला बदला सा है कुदरत का यह रंग जब से आया है .....यह कोरोना वीरान हुई सड़कें घरों में कैद हुआ आम जन मन...... डर डर के हर कोई बोला है हाय कोरोना तबाई कोरोना चैन नहीं है सांसों में भी वह भी बोले कोरोना कोरोना अब तो सिर्फ आजाद है वह पंछी..... जो प्रकृति से ना खेले बाकी बचा बेचारा मानव जो थाली - ताली से ही बोले घुटता है दम रोता है मन जिसको है कोरोना अगर रक्त में घुल गया तो विस्फोटक है कोरोना क्या करें जिद्दी बड़ा है जान लेकर ही मानता है यह कोरोना निगल रहा हैं जो जन-जन को विश्वव्यापी महामारी है यह कोरोना हाय कोरोना तबाही कोरोना