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कुछ तो बदलना होगा तुम तो मिटने ओ मिटाने पर आमादा ह

कुछ तो बदलना होगा तुम तो मिटने ओ मिटाने पर आमादा हो,
और उन्हीं पत्थर की लकीरों तरह पैठकर सोचते हो कि क्या किधर से कुरेदा जाए।

अब पूजा इबादत के लिए ज़मीन कहां  बची है
क्या ज़रूरी है घरों से निकल कर फसलों को रौंदा जाए।

कुछ तो बदलना होगा तुम तो मिटने ओ मिटाने पर आमादा हो, और उन्हीं पत्थर की लकीरों तरह पैठकर सोचते हो कि क्या किधर से कुरेदा जाए। अब पूजा इबादत के लिए ज़मीन कहां  बची है क्या ज़रूरी है घरों से निकल कर फसलों को रौंदा जाए। #शायरी

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