राज दिल हमसे बताते क्यूं भला । प्यार इतना तो छुपाते क्यूं भला ।।१ इल्म होता ये कहीं हमको जरा । दिल तुम्हारा हम दुखाते क्यूं भला ।।२ माँग में सिंदूर उनकी जच रहा । गाल टीका ना लगाते क्यूं भला ।।३ देखकर वो दूसरो की थालियां । शोर अब इतना मचाते क्यूं भला ।।४ अब नही है काम का ये आदमी । बोलियां ऐसी उठाते क्यूं भला ।।५ तू उठा पर्दा सियासत से जरा । बीज नफ़रत का उगाते क्यूं भला ।।६ खा नही पाए जिसे दीमक कभी । सच यहाँ ऐसा छिपाते क्यूं भला ।।७ हैं अगर वो भी हमारे तो कहो । जाल फिर ऐसा बिछाते क्यूं भला ।।८ भूल जो तुमको गये बोलो प्रखर । तुम उन्हें फिर से बुलाते क्यूं भला ।।९ १६/०५/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR राज दिल हमसे बताते क्यूं भला । प्यार इतना तो छुपाते क्यूं भला ।।१ इल्म होता ये कहीं हमको जरा । दिल तुम्हारा हम दुखाते क्यूं भला ।।२ माँग में सिंदूर उनकी जच रहा । गाल टीका ना लगाते क्यूं भला ।।३