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मैंने बैठ इत्मिनांन से सुनी उसकी कहानी उसने कबसे

मैंने बैठ इत्मिनांन से सुनी उसकी कहानी 
उसने कबसे अपने दिल में दबा रखी थी 
यूँ पथर् सा किरदार बना रखा है उसने 
कभी फूलों सी महका करती थी 
चिड़ियों सी चहका करती थी
 मैं डरपोक समझती रहीं उसे अब तलक 
अंजान इस बात से उस पर क्या गुजरी हैं 
एक वक़्त था किसी ने सर माथे उसे चढ़ाया 
आया एक तूफान सा जिंदगी में
 फिर उड़ा कर रंग प्यार का उससे ले गया
 कितनी कोशिशे की उसने वो सम्भाल ले वो समेट ले..
 ना जोड़ सकी टूटे दिल के टुकड़े बिखर कर रह गयी.. 
जर्रा जर्रा समेटा उसने सींचकर आँसुओं से खुद को... 
अडिग उसूलों की अपने 
पर चहेरे से बेजान सी लगती हैं अब...
 वो जिसने छोड़ दिया उसे हाल पर उसके अब लौटने की  उससे मिन्नते करता हैं...
 पर क्या रहा बाकी अब वो सम्भल चुकी हैं 
ना टूटेगी ना पिघलेगी इस बार उसका वो अटुट प्रेम अब स्वाभिमान बन चुका हैं 
और स्त्री प्रेम से समझौता कर भी ले 
 स्वाभिमान से अपने मुकरति नहीं हैं 
हे पुरुष !
वो सच्ची स्त्री हैं 
तेरे रुतबे पैसे सरकारी नौकरी पर भी नहीं बेहकेगी 
उस वक़्त तेरे साथ थी वो जब तेरा वजूद कुछ नहीं था.. 
तेरा निः स्वार्थ प्रेम तेरा साथ भाता था उसे...
 देख तेरा अहम अब वो अपनी पहचान बनाने निकल गयी 
नहीं तेरे लौटने का इंतजार उसे अब 
तू जहा हो मगर आज भी तेरी सलामती की दुआ करती हैं... 
तेरे दिये जख्म तेरे प्रेम से बढ़कर बन चुके हैं अब...
 उसे तुझ पर ऐतबार नहीं .. 
ना खुद लौटेगी ना तुझे लौटने देगी उसकी जिंदगी में दौबारा 
वो स्त्री हैं वो कभी कुछ नहीं भूलती l

©Timsi thakur #Apocalypse
मैंने बैठ इत्मिनांन से सुनी उसकी कहानी 
उसने कबसे अपने दिल में दबा रखी थी 
यूँ पथर् सा किरदार बना रखा है उसने 
कभी फूलों सी महका करती थी 
चिड़ियों सी चहका करती थी
 मैं डरपोक समझती रहीं उसे अब तलक 
अंजान इस बात से उस पर क्या गुजरी हैं 
एक वक़्त था किसी ने सर माथे उसे चढ़ाया 
आया एक तूफान सा जिंदगी में
 फिर उड़ा कर रंग प्यार का उससे ले गया
 कितनी कोशिशे की उसने वो सम्भाल ले वो समेट ले..
 ना जोड़ सकी टूटे दिल के टुकड़े बिखर कर रह गयी.. 
जर्रा जर्रा समेटा उसने सींचकर आँसुओं से खुद को... 
अडिग उसूलों की अपने 
पर चहेरे से बेजान सी लगती हैं अब...
 वो जिसने छोड़ दिया उसे हाल पर उसके अब लौटने की  उससे मिन्नते करता हैं...
 पर क्या रहा बाकी अब वो सम्भल चुकी हैं 
ना टूटेगी ना पिघलेगी इस बार उसका वो अटुट प्रेम अब स्वाभिमान बन चुका हैं 
और स्त्री प्रेम से समझौता कर भी ले 
 स्वाभिमान से अपने मुकरति नहीं हैं 
हे पुरुष !
वो सच्ची स्त्री हैं 
तेरे रुतबे पैसे सरकारी नौकरी पर भी नहीं बेहकेगी 
उस वक़्त तेरे साथ थी वो जब तेरा वजूद कुछ नहीं था.. 
तेरा निः स्वार्थ प्रेम तेरा साथ भाता था उसे...
 देख तेरा अहम अब वो अपनी पहचान बनाने निकल गयी 
नहीं तेरे लौटने का इंतजार उसे अब 
तू जहा हो मगर आज भी तेरी सलामती की दुआ करती हैं... 
तेरे दिये जख्म तेरे प्रेम से बढ़कर बन चुके हैं अब...
 उसे तुझ पर ऐतबार नहीं .. 
ना खुद लौटेगी ना तुझे लौटने देगी उसकी जिंदगी में दौबारा 
वो स्त्री हैं वो कभी कुछ नहीं भूलती l

©Timsi thakur #Apocalypse