दिखती थी हरदम पहले पर अब कुछ कम दिखती गौरैया। बचपन की यादों सी ही भोली भाली मीठी गौरैया। इधर उधर फुदका करती थी, नाज़ुक से पंखों को फैला, बांधा करती थी नज़रों को चुलबुल बेटी सी गौरैया। आँगन में, चौबारे में, छज्जों पे और अटारी में भी, छुपम छुपाई खेला करती आंख मिचौनी भी गौरैया। थोड़ा सा चुग कर रज जाती, चुप ना होती चूं चूं फिर भी, सुबह सवेरे कानों में घोला करती मिश्री गौरैया। काम बढ़ाती, हाथ बंटाती, चहक चहक के शोर मचाती, थक जाती थी तो बस बैठ के देखा मैं करती गौरैया। हुई जुदा राहें उसकी जब नभ में उड़ना सीख गयी वो, दाना पानी छोड़ा संग यादें भी छोड़ चली गौरैया। आँगन के उन सूने कोनों में अब भी बैठी दिखती है, छू लेती हूँ आंखों से, मेरी नन्ही बेटी गौरैया। — % & #अंजलिउवाच #YQdidi #गौरैया #बिटिया #पंख #नभ