बिना कहे कुछ रह जाते हो, तुम अब भी याद आते हो, पलभर अलग न रहने वाले, मिलने से भी कतराते हो, एक नौका में बैठे फिर भी, किस ख़याल में बह जाते हो, करली अख्तियार ख़ामुशी, बात न अपनी कह पाते हो, अंदर अंदर घुटते रहकर, बे-मतलब ही बलखाते हो, दुनिया से बेख़बर आजकल, ख़ुद पे कितना इतराते हो, दर्द ज़ुदाई का तुम गुंजन, कैसे इतना सह पाते हो, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #याद आते हो#