गीतिका: सावन आया सावन आया झूम-झूमकर, रिमझिम रिमझि

गीतिका: सावन आया

सावन आया झूम-झूमकर, रिमझिम रिमझिम चली फुहार।
हरियाली की चादर छायी, मनभावन सी चली बयार॥

बाग बगीचे हरे हो गये, दूर हुआ वसुधा से ताप।
रंग विरंगे पुष्पों ने भी, किया चमन का हर श्रृंगार॥

कलरव करते सारे पक्षी, और मयूरा करता नृत्य।
कोयल कूँक कूँक कर गाये, झंकृत हुआ सकल संसार॥

भोले शंकर को है प्यारा, मनभावन ये सावन मास।
नीर क्षीर जो नित्य चढ़ाये, उनका करते हैं उद्धार॥

सावन आये नाग पंचमी, पूजे जाते विषधर नाग।
दूध पिलाया जाता उनको, जो हैं प्रभु शंकर के हार॥

सावन में सखियाँ सब मिलकर, गाएं  प्यारे कजरी गीत।
झूला झूलें झूम झूमकर, लेकर मन मे खुशी अपार॥

कूढ़ी कुश्ती कला कबड्डी, मिट्टी में खेले सब लोग।
सजता दंगल गाँव गाँव में, लगता है प्यारा त्यौहार॥

शुभ शुभ सुंदर सुरभित सावन,  मस्त मस्त मोहक मधुमास।
हरियाली से हुआ सुशोभित, सकल धरा पर बाँटे प्यार॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
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