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खुलते दरवाजे की चूं से चीख के डरने वाले लोग। दिल क

खुलते दरवाजे की चूं से चीख के डरने वाले लोग।
दिल के शोर पे चुप है बैठे,
दिल पे मरने वाले लोग।

मैला आंचल देखने वाले,मोहब्बत करने वाले लोग।
गीली मूंछें पोंछ रहें है,पत्थर होने वाले लोग।

युग युग का प्रभाव अलग है,इस युग में भी दिखता है।
अक्सर झूठे निकल रहे हैं अक्सर रोने वाले लोग।

बस वो ही जिंदा है जिनको दर्द अभी तक होता है।
देख फरिश्ते हो जाते है,खुशियां खोने वाले लोग।

इश्क में तेरा ऊंचा मकदम,किसकी जूती चाट रही।
रात रात भर रोते हैं, सुबह में सोने वाले लोग।

बहुत दिनों से ख्वाहिश कोई क्यों लव तक न आई है।
शायद थक के बैठ गए हैं,सबको ढोने वाले लोग।

बस मैं ही क्यों सोच रहा हूं,वो भी कुछ तकरीर करे।
फूल वो कैसे तोड़ रहे हैं,कांटे बोने वाले लोग।

©निर्भय चौहान
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