Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल :- अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिव

ग़ज़ल :-

अब नही आती शिकायत बर्तनों से ।
हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।।

मौत के जो नाम से डरते नहीं थे ।
वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।।

बाप तक की चीख भी जिसने दबा दी ।
अब लगाए कान है वो धडकनों से ।।

भूखी ही रोती रही माँ आज दिन भर ।
लौटकर आए न बेटे बंधनों से ।।

बेचकर जागीर पुरुखों की सुना है ।
तुम न पाए क्यों निकल फिर उलझनों से ।।

२२/०८/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

अब नही आती शिकायत बर्तनों से ।
हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।।

मौत के जो नाम से डरते नहीं थे ।
वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।।
ग़ज़ल :-

अब नही आती शिकायत बर्तनों से ।
हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।।

मौत के जो नाम से डरते नहीं थे ।
वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।।

बाप तक की चीख भी जिसने दबा दी ।
अब लगाए कान है वो धडकनों से ।।

भूखी ही रोती रही माँ आज दिन भर ।
लौटकर आए न बेटे बंधनों से ।।

बेचकर जागीर पुरुखों की सुना है ।
तुम न पाए क्यों निकल फिर उलझनों से ।।

२२/०८/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

अब नही आती शिकायत बर्तनों से ।
हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।।

मौत के जो नाम से डरते नहीं थे ।
वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।।

ग़ज़ल :- अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।। मौत के जो नाम से डरते नहीं थे । वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।। #शायरी