Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल लोग अपना न घर देखते, क्यूँ पराया ही घर देखते।

ग़ज़ल

लोग अपना न घर देखते,
क्यूँ पराया ही घर देखते।

खाट टूटी पड़ी हो भले,
लोन लेकर हैं घी ठूसते।

टूटता पीढ़ियों तक क़हर,
फूंक घर जो तमाशा देखते।

घोसला जब गया हो बिखर,
ढ़ोल क्योंकर हो तुम पीटते।

'शैल' देखो फलों में फैला ज़हर,
व्यर्थ ही तुम शजर क्यों सींचते।

              ✍🏻©शैलेन्द्र राजपूत
(शजर - वृक्ष)

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #Path 
#हिंदी  #ग़ज़ल  #Hindi #hindi_poetry