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मैं जब भी एक मुसीबत से निकलती हूं, तो अकसर दूसरी म

मैं जब भी एक मुसीबत से निकलती हूं,
तो अकसर दूसरी में अटक जाती हूं,
और जो दूसरी से आगे बढ़ती हूं,
तो तीसरी में फस जाती हूं।
और मुसीबतों का जो ये सिलसिला है,
वो यूंही चलता रहता है।
अब तो मजा आने लगा है, 
ऐसे ही मुसीबतों से उलझने में, 
बिखरकर फिर से सवरने में,
गिरकर फिर से उठने में, 
टूटकर फिर से जुड़ने में, 
लड़खड़ाकर फिर से संभलने में,
और मुझे लगता भी है,
जो उलझा है इस जीवन में,
सुलझा भी वही है इस जीवन में।

©Annu Rawat Payal
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