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दर्द मुझकों हो रहा है ●●●●●●●●●●●●●●●●●● न जाने अब

दर्द मुझकों हो रहा है
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न जाने अब मुझें क्या हो रहा है
कुछ तो था भीतर जो खो रहा है

कुछ अपनो ने दे दिया दर्द इतना
इंसान भी अंदर का मेरे रो रहा है

नींदें छीन सुकूँ से कोई सो रहा है
फर्ज में कोई रिश्तों को ढो रहा है

थे बिछाएं फूल स्वागत में जिनके
कांटे मेरी खातिर वही बो रहा है

कतार में रक़ीबों के रखा मुझकों
रफीक भी मेरा कभी जो रहा है

गालों पर सजाया गुलाल जिसके
नाम भी मेरा वही अब धो रहा है

कांटों से बचाने को दे दी हथेली
अब जाकर दर्द मुझकों हो रहा है
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शशिकान्त वर्मा 'शशि'
जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
दिनाँक- १४/०१/२०२३

©SHASHIKANT
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