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गुनाहोँ से कर लिया तौबा हमने ।  जमीर जो जाग गया था

गुनाहोँ से कर लिया तौबा हमने ।
 जमीर जो जाग गया था,
आखिर कहाँ जाता ?

 तुमने बना दिया,
इंसान से देवता मुझको !
 आखिर इंसान ही तो था,
कहाँ तक निभा पाता ?

 मतलब के खातिर,
बनाई थी दोस्ती हमने ।
 बे मतलब उसे
 लेकर किधर जाता ।

कितना तंगदिल बना दिया,
मैँने खुद को !
रौशनी हाथ में उठाता,
तो किधर जाता ।

टूट गये आखिर,
नाम भर के  थे जो रिश्ते !
फूलोँ को छोड़,
आखिर काँटोँ कैसे सहलाता ?

फाकाकशीँ निगल ही गई,
उसे आखिर ।
मुफलशी का दौर था,
कितना और जी पाता ?

 वो लौटा नहीँ "बादल",
किस बात का डर था उसको ।
गम-ए- यार होता ,तो !
कुछ तो बता जाता ।

 यशपाल सिँह
"बादल

©Yashpal singh gusain badal'
  गुनाहोँ से कर लिया तौबा हमने ।
 जमीर जो जाग गया था,
आखिर कहाँ जाता ।

 तुमने बना दिया,
इंसान से देवता मुझको !
 आखिर इंसान ही तो था,
कहाँ तक निभा पाता ।

गुनाहोँ से कर लिया तौबा हमने ।  जमीर जो जाग गया था, आखिर कहाँ जाता ।  तुमने बना दिया, इंसान से देवता मुझको !  आखिर इंसान ही तो था, कहाँ तक निभा पाता । #शायरी

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