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सखी अपनों के लिए अपने से ही उलझ कर रह जाते हैं ख्व

सखी अपनों के लिए अपने से ही उलझ कर रह जाते हैं
ख्वाहिशों को दफन कर ख्वाबों को क़त्ल कर चुप रह जाते हैं

जी कर तो दिखाए कोई तो हमारा जीवन आसान लगता है अगर 
किस तरह हर कदम पीना पड़ सकता है व्यंग्य और तंज़ का जहर

फलां खुश नहीं ढिकां रूठ गया सभी का बोझ हमारे सर
जोर से अगर हंस दिए तो देखना मुस्कुराहट भी नहीं पाएगी ठहर

रिश्तों में भी स्थितियां बदलती ही रहती है हरेक पल
क्षण भर के फैसलों में ही पूरी जिंदगी जाती है बदल

 सहुलियत के हिसाब से इस्तेमाल करने की चाह रखते हैं
भावनाओं से नहीं अच्छी दौलत व हैसियत से रिश्ते चलते हैं 
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla
  सहूलियत

सहूलियत #शायरी

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