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मेरा भी मन करता है हाथ पकड़ साथ चलूं उन्हीं रेत पर

मेरा भी मन करता है
हाथ पकड़ साथ चलूं
उन्हीं रेत पर कभी 
तुम्हारे साथ मिल ठहाके मार हँसा करूं
पर वक्त ने बेड़ियां डाल दी हैं पैरों में
जिम्मेदारियों का बोझ जो ले लिया हूं अपने कांधे पे
अब न होगा कभी ये मुमकिन
अकेले में बैठ मुस्कुरा लेता हूं
कल्पनाओं में हाथ पकड़ रेत पर टहल लेता हूं
उन्हीं रेत पर अपना आशियां बना हंस लेता हूं कभी
हां जीता हूं साथ तुम्हारे पर कल्पनाओं में
जिंदगी को जीता हूं बस उन्हीं कल्पनाओं में

©Explorer
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