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ग़ज़ल  दुश्मनों के वो ठिकाने हैं कहाँ । धूल उनको फिर

ग़ज़ल 
दुश्मनों के वो ठिकाने हैं कहाँ ।
धूल उनको फिर चटाने हैं कहाँ ।।

शेर हैं जाबांज अपने वीर ये।
पूछते घुटने टिकाने हैं कहाँ ।।

शान अपनी ये तिरंगा ही रहे ।
दुश्मनों को फिर झुकाने हैं कहाँ ।।

छोड़कर परिवार अपने जो गये ।
उसको रिश्ते फिर बढ़ाने हैं कहाँ ।।

प्रेम को बदनाम जो करते यहाँ ।
प्रेम के रिश्ते निभाने हैं कहाँ ।।

फिर वफ़ा के नाम से अस्मत लुटी ।
प्रेम की वो अब दुकाने हैं कहाँ ।।

मिल रहे है लोग हमसे जिस तरह ।
पूछ मत तू अब बेगाने हैं कहाँ ।।

थक गये उड़ते हुए पक्षी गगन ।
की जमीं पे अब ठिकाने हैं कहाँ

मत प्रखर खोजो वफ़ा की डालियाँ ।
फूल उनमें अब खिलाने हैं कहाँ ।।

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल 

दुश्मनों के वो ठिकाने हैं कहाँ ।

धूल उनको फिर चटाने हैं कहाँ ।।


शेर हैं जाबांज अपने वीर ये।
ग़ज़ल 
दुश्मनों के वो ठिकाने हैं कहाँ ।
धूल उनको फिर चटाने हैं कहाँ ।।

शेर हैं जाबांज अपने वीर ये।
पूछते घुटने टिकाने हैं कहाँ ।।

शान अपनी ये तिरंगा ही रहे ।
दुश्मनों को फिर झुकाने हैं कहाँ ।।

छोड़कर परिवार अपने जो गये ।
उसको रिश्ते फिर बढ़ाने हैं कहाँ ।।

प्रेम को बदनाम जो करते यहाँ ।
प्रेम के रिश्ते निभाने हैं कहाँ ।।

फिर वफ़ा के नाम से अस्मत लुटी ।
प्रेम की वो अब दुकाने हैं कहाँ ।।

मिल रहे है लोग हमसे जिस तरह ।
पूछ मत तू अब बेगाने हैं कहाँ ।।

थक गये उड़ते हुए पक्षी गगन ।
की जमीं पे अब ठिकाने हैं कहाँ

मत प्रखर खोजो वफ़ा की डालियाँ ।
फूल उनमें अब खिलाने हैं कहाँ ।।

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल 

दुश्मनों के वो ठिकाने हैं कहाँ ।

धूल उनको फिर चटाने हैं कहाँ ।।


शेर हैं जाबांज अपने वीर ये।

ग़ज़ल  दुश्मनों के वो ठिकाने हैं कहाँ । धूल उनको फिर चटाने हैं कहाँ ।। शेर हैं जाबांज अपने वीर ये। #शायरी