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शाम ए ग़म हर सू चलती है फ़िज़ा लेके गमो की रिदा मैं ओ

शाम ए ग़म
हर सू चलती है फ़िज़ा लेके गमो की रिदा
मैं ओढ़ लेता हूँ, सिमट जाता हूँ कुछ इस तरह
जैसे कोई कोढ़ लेता हूँजम जाता हूँ बर्फ की तरह
हवाओ में उड़ता है हादसों का माज़ी
एक एक हर्फ़ साफ दिखता,जॉब के लिए सारे परेशान है
दिल्ली पटना मुंबई रांची
यहाँ अंधभक्त जानवरो की तरह घूमे,समझें खुद को काज़ी
आवाज़ समझ समझ रही है समझें पाजी
जाहिल सरकार में आकर समझ रहे है खुद को hitler of नाज़ी 
क्यों मेरी ज़िन्दगी पे मेरा ही बस नहीं चलता
एक लम्हे की भी ख़ुशी मयस्सर हो,क्या खुदा मेरा इतना भी हक़ नहीं बनता
इस नासाज़ केफियत से तंग आ कर,कुछ मुक्के दीवारों पे मार लेता हूँ
इंसानियत को देखूं सुर्खयों नंगा होता तो वही अखबार फाड़ लेता हूँ
खूँ भरी है गरीबों की रूदाद
बेकसूरो के घर टूटे जेल भेजा गया
शैतान घुमते है आजाद
न्यूज़ चैनल वाले करते झूटी बकवास
तू अपनी तारीफे रख अपने पास,नहीं चाहिए मुझे फ़र्ज़ी दाद
जगह जगह मिलती है मज़लूमो की लाश
जान जाते हुए ऐसे दिखती,जैसे बिखरते हो ताश
मेरा क्या क़ुसूर था किस गुनाह की सज़ा दी गई
चिल्लाती है लाश आधी रात के अंधेरों में मुझे आती है आवाज़
नेताओं का मज़े से काम चाल रहा जैसे
इन्हे क्या फ़िक्र कहाँ देश जल रहा है
किसी की लुटे इज़्ज़त या हो क़त्ल,इनकी आँखों से ना बहेगा जल
ख़ामोश रहेंगे ख़ामोश रहने वाले,इस कुत्तेनुमा मिडिया के ज़बाँ पे लगे है ताले
सच्चाई नहीं बताते ये भूतनीवाले

©qais majaaz,3rdmaster #smog
शाम ए ग़म
हर सू चलती है फ़िज़ा लेके गमो की रिदा
मैं ओढ़ लेता हूँ, सिमट जाता हूँ कुछ इस तरह
जैसे कोई कोढ़ लेता हूँजम जाता हूँ बर्फ की तरह
हवाओ में उड़ता है हादसों का माज़ी
एक एक हर्फ़ साफ दिखता,जॉब के लिए सारे परेशान है
दिल्ली पटना मुंबई रांची
यहाँ अंधभक्त जानवरो की तरह घूमे,समझें खुद को काज़ी
आवाज़ समझ समझ रही है समझें पाजी
जाहिल सरकार में आकर समझ रहे है खुद को hitler of नाज़ी 
क्यों मेरी ज़िन्दगी पे मेरा ही बस नहीं चलता
एक लम्हे की भी ख़ुशी मयस्सर हो,क्या खुदा मेरा इतना भी हक़ नहीं बनता
इस नासाज़ केफियत से तंग आ कर,कुछ मुक्के दीवारों पे मार लेता हूँ
इंसानियत को देखूं सुर्खयों नंगा होता तो वही अखबार फाड़ लेता हूँ
खूँ भरी है गरीबों की रूदाद
बेकसूरो के घर टूटे जेल भेजा गया
शैतान घुमते है आजाद
न्यूज़ चैनल वाले करते झूटी बकवास
तू अपनी तारीफे रख अपने पास,नहीं चाहिए मुझे फ़र्ज़ी दाद
जगह जगह मिलती है मज़लूमो की लाश
जान जाते हुए ऐसे दिखती,जैसे बिखरते हो ताश
मेरा क्या क़ुसूर था किस गुनाह की सज़ा दी गई
चिल्लाती है लाश आधी रात के अंधेरों में मुझे आती है आवाज़
नेताओं का मज़े से काम चाल रहा जैसे
इन्हे क्या फ़िक्र कहाँ देश जल रहा है
किसी की लुटे इज़्ज़त या हो क़त्ल,इनकी आँखों से ना बहेगा जल
ख़ामोश रहेंगे ख़ामोश रहने वाले,इस कुत्तेनुमा मिडिया के ज़बाँ पे लगे है ताले
सच्चाई नहीं बताते ये भूतनीवाले

©qais majaaz,3rdmaster #smog