हसरत मोहानी साहब की लिखी मशहूर ग़ज़ल "चुपके चुपके रात दिन" की बह्र में ही इस ग़ज़ल को लिखा है। हसरत एक मशहूर शायर और आज़ादी के सिपाही थे। उनके बारे में और पढ़ा तो उनकी लिखावट से एक रिश्ता बना और ये भी जाना के हम लोग तो एक ही मिट्टी से हैं - वो अवध के मोहान से और हम लखनऊ से।
कम लोगों को पता है के "इंकलाब ज़िंदाबाद" नारा भी उन्होंने ही लिखा था। हसरत की ग़ज़लों में एक ख़ास बात हुई, जहाँ उन्होंने मेहबूब को ख़ुदा के दर्जे से उतारके सामने एक सादा इंसान सा ला खड़ा किया। जैसे "चुपके चुपके रात दिन" में लिखा "खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ'तन" इसमें मेहबूब मानो सामने ही पर्दे के पीछे खड़ा है और हमारे जैसा ही एक शख़्स है। उनको ही याद करते लिखी ये ग़ज़ल - अभी भी है
जानिब = तरफ़
मुख़्तलिफ़ = अलग
बह्र: 112 / 122 / 112 / 122 / 112 #ghazal#yqbaba#yqdidi#yqhindi#yqlove#yqghazal#yqaestheticthoughts