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शीर्षक - मैं मगर अपनी जिंदगी को , ऐसे जीता रहा ---

शीर्षक - मैं मगर अपनी जिंदगी को ,
ऐसे जीता रहा
--------------------------------------------------------------
मैं मगर अपनी ज़िंदगी को, ऐसे जीता रहा।
कभी हँसा मैं बहुत, कभी बहुत रोता रहा।।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।

गैरों की बात करुँ क्या, अपनों ने भी नहीं छोड़ा।
पीठ पीछे चलाये तीर, दिल मुझसे नहीं जोड़ा।।
लुटता रहा अपनों से मैं, बदनाम होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।

दोस्त होकर भी उन्होंने, तारीफ कभी नहीं की।
उड़ाई हमेशा मेरी हंसी, मदद कभी नहीं की।।
दर्द दिल में छुपाये रहा, बर्बाद मैं होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।

हाथ मिलाया जिससे भी, ख्वाब वह टूट गया।
रहा मैं हमेशा अकेला ही, प्यार मेरा रुट गया।।
देते रहे सब बददुहायें, मैं काँटों में चलता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीत✍🏻
शीर्षक - मैं मगर अपनी जिंदगी को ,
ऐसे जीता रहा
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मैं मगर अपनी ज़िंदगी को, ऐसे जीता रहा।
कभी हँसा मैं बहुत, कभी बहुत रोता रहा।।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।

गैरों की बात करुँ क्या, अपनों ने भी नहीं छोड़ा।
पीठ पीछे चलाये तीर, दिल मुझसे नहीं जोड़ा।।
लुटता रहा अपनों से मैं, बदनाम होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।

दोस्त होकर भी उन्होंने, तारीफ कभी नहीं की।
उड़ाई हमेशा मेरी हंसी, मदद कभी नहीं की।।
दर्द दिल में छुपाये रहा, बर्बाद मैं होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।

हाथ मिलाया जिससे भी, ख्वाब वह टूट गया।
रहा मैं हमेशा अकेला ही, प्यार मेरा रुट गया।।
देते रहे सब बददुहायें, मैं काँटों में चलता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #गीत✍🏻
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Gurudeen Verma

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