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जैसे उजला सा आफ़ताब। रस भरे अधरों से झरती सबनम, जुल

जैसे उजला सा आफ़ताब।
रस भरे अधरों से झरती सबनम,
जुल्म ढाये नेनों पर ये पलकों का नकाब।
ये हूर जन्नत की लगे मदन,
जीत कर आई परियों का शबाब।।

©Faniyal
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madanfaniyalsing6853

Faniyal

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