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Faniyal
हंसी की महफिल में हँसता मै ख़ुद संता और बंता हूँ!
सोक की सभाओं में रोता मै खुद गंगा और नालंदा हूँ!
रहता हूँ स्तब्ध सा कभी, और कभी स्वयं मुस्कुराता हूँ!
चलो तुम ही समझाओ मुझको, कि मै कैसा बंदा हूँ!!
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