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ग़ज़ल :- दिखाओ वह घटा काली कहाँ है । यहाँ चंचल नयन व

ग़ज़ल :-
दिखाओ वह घटा काली कहाँ है ।
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है ।।१

जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है ।
दरख्तों की सूखी डाली कहाँ है ।।२

गुजारा किस तरह हो आदमी का ।
जमीं पर अब जगह खाली कहाँ है ।। ३

जिसे हम चाहते दिल जान से अब ।
हमारी वो हँसी साली कहाँ है ।।४

मिलन अब हो गया शायद सजन से
बची अब होठ पर लाली कहाँ है ।।५

वफ़ा पर कल तुम्हारी जो फ़ना थी ।
बताओ आज घरवाली कहाँ है ।।६

निभाने यार से वादा गई थी ।
गिराई कान की बाली कहाँ है  ।।७

मसल कर फेक देते सब सुमन को ।
खबर आती बता माली कहाँ है ।।८

बहन ही मानकर उसको शरण दी ।
नज़र उसपे बुरी डाली कहाँ है ।९

जुबा मेरी न खुलवाओ यहाँ पर ।
खबर सबको कि हरियाली कहाँ है ।।१०

प्रखर ने कर लिया दो बात हँसकर ।
बता इसमें दिया गाली कहाँ है ।।११

१७/०५/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
दिखाओ वह घटा काली कहाँ है ।
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है ।।१

जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है ।
दरख्तों की सूखी डाली कहाँ है ।।२

गुजारा किस तरह हो आदमी का ।
ग़ज़ल :-
दिखाओ वह घटा काली कहाँ है ।
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है ।।१

जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है ।
दरख्तों की सूखी डाली कहाँ है ।।२

गुजारा किस तरह हो आदमी का ।
जमीं पर अब जगह खाली कहाँ है ।। ३

जिसे हम चाहते दिल जान से अब ।
हमारी वो हँसी साली कहाँ है ।।४

मिलन अब हो गया शायद सजन से
बची अब होठ पर लाली कहाँ है ।।५

वफ़ा पर कल तुम्हारी जो फ़ना थी ।
बताओ आज घरवाली कहाँ है ।।६

निभाने यार से वादा गई थी ।
गिराई कान की बाली कहाँ है  ।।७

मसल कर फेक देते सब सुमन को ।
खबर आती बता माली कहाँ है ।।८

बहन ही मानकर उसको शरण दी ।
नज़र उसपे बुरी डाली कहाँ है ।९

जुबा मेरी न खुलवाओ यहाँ पर ।
खबर सबको कि हरियाली कहाँ है ।।१०

प्रखर ने कर लिया दो बात हँसकर ।
बता इसमें दिया गाली कहाँ है ।।११

१७/०५/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
दिखाओ वह घटा काली कहाँ है ।
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है ।।१

जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है ।
दरख्तों की सूखी डाली कहाँ है ।।२

गुजारा किस तरह हो आदमी का ।

ग़ज़ल :- दिखाओ वह घटा काली कहाँ है । यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है ।।१ जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है । दरख्तों की सूखी डाली कहाँ है ।।२ गुजारा किस तरह हो आदमी का । #शायरी