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एक गरीब की मजबूरी देखी, चंद कागज के टुकड़ों मे गां


एक गरीब की मजबूरी देखी,
चंद कागज के टुकड़ों मे
गांव से शहर की दूरी देखी
लुटती उसकी मजदूरी देखी...
क्यूंकि हम मजदूर हैं
बस इसलिए मजबूर हैं...
टेक्स तो हमने भी चुकाया हैं
हमने ही तो तुम्हें बनाया है...
घंटो लगे है कतारों मे
जब अपना वोट गिराया है...
5 साल मे एक बार तुम वोट चुराने आते हो
आये संकट की घड़ी तो तुम आँख चुरा जाते हो...
कभी तो उस कष्ट का हिसाब भी ले आओ
जो हम हर रोज उठा रहें हैं...
वोट तो ले जाते हो, कभी जख्मो के निशान ले जाओ
क्यों हम मजदूर के बच्चे यूं सड़को पर छोड़ दिए
मिल सके जो कहीं इसका जवाब ले आओ....??

©Moksha
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