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डॉ राघवेन्द्र

#CHILD_LABOUR

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✍️आज की डायरी✍️

रईसजादे कहाँ जान पाते हैं, एक रोटी की क़ीमत क्या होती है । 

शाम का निवाला कैसे आता है ,मज़दूर का पसीना ही बताता है हमें ।।

मेहनत ही जिनका तरीका है घर -परिवार को पालने के लिए  । 

कठिनाई में उनका मुस्कुराना जीने का सलीका सिखाता है हमें  ।। 

                 मज़दूर दिवस पर बस.........

                           ✍️नीरज✍️

©डॉ राघवेन्द्र #CHILD_LABOUR

Moksha

डॉ राघवेन्द्र

#CHILD_LABOUR

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✍️आज की डायरी✍️

            ✍️आज के दौर में भी.....✍️

कह देने से लड़की लड़कों के बराबर नहीं होती , 
आज के दौर में भी भेदभाव दिखाई देता है । 
लड़के के जन्म पर हर तरफ़ शोर मचा देते हैं  , 
लड़की के जन्म पर आवाज भी नहीं सुनाई देता है  ।। (१) 

पहली संतान लड़की हो तो खुशी मना लेते हैं  , 
दूसरी गर हो जाये तो दबे मन से मुस्कुरा देते हैं  , 
फ़िर वंश के लिए समाज इन्हें पराई कर देता है  । 
आज के दौर में भी भेदभाव दिखाई देता है  ।। (२) 

स्त्रियाँ ही फिर बालक के लिए बहुत जोर देती है , 
दुःख ये है कि स्त्री ही लड़की का विरोध करती है , 
अनवरत फिर संतानों का होना जगहसाई होता है  । 
आज के दौर में भी भेदभाव दिखाई देता है  ।। ( ३)

मुझे बस आज इस समाज को ये बात बताना है , 
लड़कियों को पराया धन नहीं गृह लक्ष्मी बनाना है  , 
लड़कों से समानता के लिए सभी लड़कियों को  , 
अपने वजूद के लिए स्वतः पैरों पर खड़े हो जाना है  , 
लड़की को सम्मान देने में अपनों से ही लडाई होता है  । 
आज के दौर में भी भेदभाव दिखाई देता है  ।।  (४)

©डॉ राघवेन्द्र #CHILD_LABOUR

डॉ राघवेन्द्र

#CHILD_LABOUR

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Diwanshi Narwal

#CHILD_LABOUR

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Rj_Rajesh_बली

#CHILD_LABOUR ग़ज़ल में कोई गहराई ना बचे, इसलिए मैंने आखिरी में पापा पापा का इस्तेमाल किया है।। समझदार के लिए तो इशारा काफ़ी है।

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युग -युग से चलता आ रहा, बस एक युगवाणी
सिर्फ प्रेम चरितार्थ करने में,मत व्यर्थ करो जवानी

मानता हूं मन तेरा अभी,  है प्रेम का प्यासा
पर जिंदगी के है, और भी कई अभिलाषा
अभी नजर न फेरे तुम तो, मिलेंगी बहुत  निराशा 
जब खिलौने के जिद में, बच्चे कहेंगे पापा-पापा

©Rajesh Yadav #CHILD_LABOUR ग़ज़ल में कोई गहराई ना बचे, इसलिए मैंने आखिरी में पापा पापा का इस्तेमाल किया है।।
समझदार के लिए तो इशारा काफ़ी है।

Shitanshu Rajat

तेज़ हवा का बचा हुआ, इक दबा -सा शोर गया हूँ,
मैं बच्चा नहीं रहा अब से, कमाऊ मोर हो गया हूँ।

कोई छोटू, कोई छोकरा, कोई अबे ओये बुलाता है,
कोई अमीरज़ादा आकर के ज़लील कर जाता है,
सब सहता हूँ, जबसे घर की रोटी की डोर हो गया हूँ
मैं बच्चा नहीं रहा अब से, कमाऊ मोर हो गया हूँ।

उम्मीदों की आँखों में, मैं कुछ ख्वाब संजोये रखता हूँ,
पूरे करने की कोशिश में मेहनत के बीज बोये रखता हूँ,
घुटता हूँ जो दाग लगा, लोग कहते के चोर हो गया हूँ,
मैं बच्चा नहीं रहा अब से, कमाऊ मोर हो गया हूँ।


     कमाऊ मोर हो गया हूँ, 
#बच्चा_नहीं_रहा #बचपन #बच्चा #Child #13june2k17 #yqbaba #YQdidi #YQPoetry #yqhindi #कमाऊ_मोर #child_labour #Yopowrimo......

अभी कुछ बाकी हैं

#CHILD_LABOUR

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जिम्मेवारी जब कंधो पर पड़ती हैं
तो अक्सर बचपन याद आ ही जाता हैं!

©अभी कुछ बाकी हैं #CHILD_LABOUR

Muskan Satyam

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*मैंने मासूमों को बिकते देखा*
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जिन मासूमों की हँसी से,  घर का आँगन  गुलज़ार होते देखा।
रो पड़ा ये हृदय, जब मजदूरी, भिक्षावृत्ति और  जिस्मफ़रोशी में, 
उनकी गरिमा को तार-तार होते देखा।। 

जिनकी किलकारियों से, पूरे घर को चहकते देखा।
गाँव के बाग़ान को , जिन फूलों की ख़ुश्बू से महकते देखा।
रो पड़ा ये हृदय, जब उन्हें ग़रीबी से बेबस ,  
कभी बहकते तो कभी बिकते देखा।। 

जिन बच्चियों की आँखों में, एक सुनहरे कल के सपने को पलते देखा।
रो पड़ा ये हृदय, जब चंद रुपयों के लिए,
उन्हें किसी की बहु, किसी की पत्नी, और कच्ची उम्र में  माँ बनते देखा।। 

इन सभी अमानवीय यातनाओं पर,  
प्रशासन  से  आम जनता को सवाल करते  देखा।
रो पड़ा ये हृदय, जब इस अचेतन किंतु तथाकथित प्रबुद्ध समाज को हाथ पर हाथ धरे ,
सिर्फ़ इन मुद्दों पर बतकही करते देखा।। 

यूँ ही बाज़ार से गुज़रते हुए,  
इंसानों को इंसानों के हाथ सरेआम बिकते देखा।।

©Muskan Satyam #Childhood
#CHILD_LABOUR
#SayNoToChildLabour
#SayNoToChildmarriage
#SayNoToChildAbuse

Muskan Satyam

*बच्चे : देश के भविष्य*
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कभी सड़कों के किनारे, कभी मेट्रो स्टेशन्स के बाहर,
कभी ट्रैफिक सिग्नल पर, कभी मंदिरों के बाहर।
कभी हाथ फैलाये, कभी गुब्बारे बेचने को आये,
हाँ देखा है मैंने देश के भविष्य को, देश की वर्तमान दशा से लड़ते ।।
छोटी-छोटी आँखों में बड़े-बड़े सपने, मुट्ठी में करने चले हैं ये अपने।
आसमां की ऊँचाई को हौसलों से नापने, कल की किताबों में अपनी तस्वीर छापने।।
नन्ही-सी उम्र में आजीविका का बड़ा बोझ सँभालते,
अपने होठों की मुस्कान को फिर भी हर पल निखारते।
अपने किस्मत की लकीरों को, अपने जज्बे से सँवारते,
हाँ देखा है मैंने देश के भविष्य को, देश की वर्तमान दशा से लड़ते ।।

©Muskan Satyam #ChildrensDay  #FutureofIndia #CHILD_LABOUR
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