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तोड़ कर राब्ता कहाँ जायें । हम तुम्हारे सिवा कहाँ ज

तोड़ कर राब्ता कहाँ जायें ।
हम तुम्हारे सिवा कहाँ जायें ।

बारिशों की फ़ुहार में पंछी,
छोड़कर घोंसला कहाँ जायें ।

सरहदों, मज़हबों की दुनिया है,
तेरे बन्दे खुदा कहाँ जायें ।

चल तो आये हैं तेरी चौखट से,
अब नहीं कुछ पता कहाँ जायें ।

उलझा-उलझा सा है सफ़र नीरज,
ढूंढ़ने रास्ता कहाँ  जायें ।

©Neeraj Nishchal
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