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खिचड़ी के त्यौहार में , खुशी बाँटते लोग । अन्न दान

खिचड़ी के त्यौहार में , खुशी बाँटते लोग ।
अन्न दान करके वही , करते उसका भोग ।।
करते उसका भोग , सजाकर सबके सपने ।
नहीं किसी से बैर ,  सभी तो लगते अपने ।।
सबकी खुशियाँ देख , खुशी से उछले पगड़ी ।
आयी है संक्रांति , मनाते हम सब खिचड़ी ।।

खाकर छप्पन भोग भी , मिलती खुशी न देख ।
कौर-कौर खिचड़ी मिली , बदली अपनी रेख ।।
बदली अपनी रेख , प्यार से महका जीवन ।
बिखराओ ये फूल , यही तो अपना उपवन ।।
आओ खेले आज ,प्रखर हम तुम ये लगँड़ी ।
 बदले सभी रिवाज ,साथ में खाकर खिचड़ी ।।

१५/०१/२०२४       -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR खिचड़ी के त्यौहार में , खुशी बाँटते लोग ।

अन्न दान करके वही , करते उसका भोग ।।

करते उसका भोग , सजाकर सबके सपने ।

नहीं किसी से बैर ,  सभी तो लगते अपने ।।
खिचड़ी के त्यौहार में , खुशी बाँटते लोग ।
अन्न दान करके वही , करते उसका भोग ।।
करते उसका भोग , सजाकर सबके सपने ।
नहीं किसी से बैर ,  सभी तो लगते अपने ।।
सबकी खुशियाँ देख , खुशी से उछले पगड़ी ।
आयी है संक्रांति , मनाते हम सब खिचड़ी ।।

खाकर छप्पन भोग भी , मिलती खुशी न देख ।
कौर-कौर खिचड़ी मिली , बदली अपनी रेख ।।
बदली अपनी रेख , प्यार से महका जीवन ।
बिखराओ ये फूल , यही तो अपना उपवन ।।
आओ खेले आज ,प्रखर हम तुम ये लगँड़ी ।
 बदले सभी रिवाज ,साथ में खाकर खिचड़ी ।।

१५/०१/२०२४       -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR खिचड़ी के त्यौहार में , खुशी बाँटते लोग ।

अन्न दान करके वही , करते उसका भोग ।।

करते उसका भोग , सजाकर सबके सपने ।

नहीं किसी से बैर ,  सभी तो लगते अपने ।।

खिचड़ी के त्यौहार में , खुशी बाँटते लोग । अन्न दान करके वही , करते उसका भोग ।। करते उसका भोग , सजाकर सबके सपने । नहीं किसी से बैर ,  सभी तो लगते अपने ।। #शायरी