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White 212  212   212  212  चांँदनी मुस्कुराती रही

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चांँदनी मुस्कुराती रही रात भर। 
ज़िंदगी खार खाती रही रात भर। 

थी शमां जल रही बीच महफिल मग़र , 
दिल हमारा जलाती रही रात भर। 

फासले दरमियां थे मिटे ही नहीं, 
अश्क आंँखें बहाती रही रात भर। 

आरजू थी हमारी चले हमकदम, 
ख्वाहिशें चोट खाती रही रात भर। 

चोट ऐसी मिली जो मिटी ही नहीं, 
ज़ख्म सारे छुपाती रही रात भर।

था समंदर बहा खूब लहरें उठीं, 
कश्तियांँ को डूबाती रही रात भर। 

दर्द को गुनगुनाते रहे हैं ‘उषा’, 
ख़ुद जली को बुझाती रही रात भर।

©Dr Usha Kiran
  #चाँदनी मुस्कराती रही रात भर

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