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तन्हा कभी बैठ के पीपल के साये में, सोंचा था इसकी स

तन्हा कभी बैठ के पीपल के साये में,
सोंचा था इसकी साख के कितने ही रंग है।

हर साख इसकी खुद से जुदा खुद से अलग है,
हर साख में कुछ न कुछ अंदाज अलग है।

ऐसे ही तो इंसान है इंसान से जुदा,
एक साख का होते हुए मां बाप से जुदा।

जितनी भी इसकी साख है औलाद है इसकी,
एक दिन करेगी इसको भी घर बार से जुदा।

लानत हो ऐसी साख पे सौ बार, बार बार
करती रही जो साख हर साख से जुदा।

–अस शाह मोहम्मद शाहबाज मियां

IG/@the_sufi_way.110

©SHAH MOHAMMAD SHAHBAZ MIYA
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