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Blue Moon ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हू

Blue Moon ग़ज़ल
किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं ।
वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१

बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक ।
मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२

मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं  रास्ता दूँगा ।
खबर ही थी नहीं ये की निशाना आज भी हूँ मैं ।।३

न जाने क्यूँ कदम मेरे खिचें यूँ ही चले जाते ।
कोई बतला  मुझे ये दे मिटा क्या आज भी हूँ मैं ।।४

जुदा होकर भी उनसे क्या कहूँ दिल की तमन्ना को 
 दिया सा राह में ये दिल जलाता आज भी हूँ मैं ।।५

खिलौना वह समझकर जिस तरह मुझ से यहाँ खेलें ।
उन्हीं से यार अब रिश्ता निभाता आज भी हूँ मैं ।।६

सुना दो तुम प्रखर अब तो खबर उस बेवफ़ा की कुछ ।
यहाँ जिसके लिए आसूँ बहाता आज भी हूँ मैं ।।७
१६/०३/२०२४       -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल
किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं ।
वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१

बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक ।
मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२

मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं  रास्ता दूँगा ।
Blue Moon ग़ज़ल
किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं ।
वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१

बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक ।
मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२

मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं  रास्ता दूँगा ।
खबर ही थी नहीं ये की निशाना आज भी हूँ मैं ।।३

न जाने क्यूँ कदम मेरे खिचें यूँ ही चले जाते ।
कोई बतला  मुझे ये दे मिटा क्या आज भी हूँ मैं ।।४

जुदा होकर भी उनसे क्या कहूँ दिल की तमन्ना को 
 दिया सा राह में ये दिल जलाता आज भी हूँ मैं ।।५

खिलौना वह समझकर जिस तरह मुझ से यहाँ खेलें ।
उन्हीं से यार अब रिश्ता निभाता आज भी हूँ मैं ।।६

सुना दो तुम प्रखर अब तो खबर उस बेवफ़ा की कुछ ।
यहाँ जिसके लिए आसूँ बहाता आज भी हूँ मैं ।।७
१६/०३/२०२४       -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल
किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं ।
वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१

बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक ।
मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२

मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं  रास्ता दूँगा ।

ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२ मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं  रास्ता दूँगा । #शायरी